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जैन-रत्नसा
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सुरतरु फलियो, दुःख दारिद्र सहु दूर गमायो आ० ॥१०३॥ आज मनोरथ सहु मुझ फलिया, आज आनन्द मंगल बरतायो आ० ॥ १०४ ॥ गुरु खरतर जिन आज्ञा पालक, सोहें हंस सूरि महारायो आ० ॥ १०५॥ पाठक पद लायक गुण शोभित, सुगुण प्रमोद चैतन गुण पायो आ० ॥१०६॥ विद्या विशाल वाचक सुखदायक, पंडित लक्ष्मी प्रधान पसायो आ० ॥१०७॥ तासु सीस मोहन हित जाणी, उत्तम ए तीरथ गुण गायो आ० ॥ १०८ ॥
Pertan
इस प्रकार स्तवन कहके जयवीयराय • अरिहंत चेइयाणं • अणत्य • कह एक णमोक्कार का काउसग्गपार निम्न स्तुति पढ़े ।
सिद्धगिरि स्तुति
सेन्त्रुञ्जागिरि नमिये ऋषभदेव पुण्डरीक, शुभ तपनी महिमा सुणगुरु मुख निरभीक । शुद्धमन उपवासे, विधिसं चैत्य बन्दनीक । करिये जिन आगल, टाली वचन अलीक ॥१॥
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श्री सिद्धगिरि जयति
१ श्री शत्रुञ्जयाय नमः | २ श्री पुण्डरीकाय नमः | ३ श्री सिद्धक्षेत्राय नमः । ४ श्री विमलाचलाय नमः | ५ श्री सुरगिरये नमः | ६ श्री महागिरये नमः | ७ श्री पुण्यराशये नमः । ८ श्री पर्वताय नमः । ९ श्री पर्वतेन्द्राय नमः | १० श्री महातीर्थाय नमः | ११ श्री शाश्वताय नमः । १२ श्री दृढ़शक्तये नमः । १३ श्री मुक्तिनीलाय नमः | १४ श्री पुष्पदन्ताय नमः | १५ श्री महापद्माय नमः । १६ श्री पृथ्वीपीठाय नमः । १७ श्री सुभद्रगिरये नमः । ४८ श्री कैलासगिरये नमः | १९ श्री पातालमूलाय नमः | २० अकर्मकाय नमः । २१ श्री सर्वकामपूरणाय नमः ।
ये सिद्धगिरि की खमासमणपूर्वक जयति देव
पांच क्रोड़ साधुओंके साथ पालीताणा तीर्थ ( सिद्धाचलजी तीर्थ ) पर चैत्र सुदी १५ के दिन ऋषभदेव स्वामी के प्रथमगणधर पुण्डरीक स्वामी
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