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विधि - विभाग
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यहां पर यात्रियों को जो । सतावें दुःख दें या तो, विमलगिरिराज जयकारी ॥ परम० २२ ॥ जिनेश्वर तुल्य जिन प्रतिमा, सुपूजा को विमलजल से । यहां करते विमल गुण हो, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० २३ ॥ यहां चन्दन सुखद पूजा, सकल सन्ताप हर करके । मनोहर दिव्य पढ़ देवें, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० २४ ॥ यहां वर पुष्प पुंजों की, सुगन्धी दिव्य मालाए ं । चढ़ाते सिद्धगति चढ़ते, विमल गिरिराजं जयकारी ॥ परम० २५ ॥ दशांगी धूप करने से, यहां जन पाप हरते हैं । अशुभ दुर्गन्ध को टारे, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम ० २६ ॥ यहां पर दीप करने से, तिमिर भर नाश होता है । पुनित परकाश होता है, विमल गिरिराज जयकारी || परम० २७ ॥ सरल शुभ अक्षतों का जो, करें स्वस्तिक यहां पर वे । चतुर्गति चूर देते हैं, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० २८ ॥ सरस नैवेद्य ढोते हैं, यहां जो पुण्य पावें वे । अनाहारक परमपदको, विमल गिरिराज जयकारी || परम० २९ ॥ अनुत्तर फल चढ़ावें जो, यहां फल दिव्य पाकर वे । करम फल मुक्त होते हैं, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० ३० ॥ यहां पर आरती करते, निजारति दुःख लय होवे । महोदय प्राप्त होता है, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० ३१ ॥ सुमंगल दीप करने से, अमंगल भाव हटते हैं । परम मंगल यहां होवे, विमल गिरिराज जयकारी || परम० ३२ || यहां पर द्रव्य पूजा भी, समुन्नत भाव प्रकटाती । हरे फिर भाव भव भय को, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० ३३ ॥ यहां पूजक हुए होवें, सदा स्वाधीन सुख भोगी । महागुण पूज्यतावाले, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० ३४ ॥ प्रभु श्रीकेवलज्ञानी, प्रमुख तीर्थंकरों की भी। यहां सिद्धि हुई शाश्वत, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० ३५ ॥ यहां शुक सेलगादिक ने, खपाये आठ कर्मों को । हुए अकलंक आनन्दी, विमल गिरिराज जयकारी || परम० ३६ || यहां रघुवंश रामादिक, विजेता द्रव्य अरु भावे | अभयपद पूर्णता पाए, विमल गिरिराज जयकारी || परम० ३७ ॥ निजाम में यहां आते, प्रकटता पूर्ण सुखसागर । न दुःख का लेश रहता है,
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