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जैन-रनसार
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रहती है, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० ५ ॥ यहां पर लोभ का सागर, सहज में सूख जाता है। महा तेजो मयी मूर्ति, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० ६॥ कलुषित भावना वाली, कुलेश्या कृष्ण नीलादि। यहां पर नाश होती हैं, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० ७॥ सुलेश्या तेज पद्मादि, विमल गुण भावना वाली। यहां सुविकाश पाती हैं, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० ८॥ निमित्तों की शुभाशुभता, शुभाशुभ काम करती हैं। जगत के शुभ निमित्तों में, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० ९ ॥ अकारण काम कोई भी, यहां होते नहीं देखा । सुकारज में सुकारण है, विमल गिरिराज जयकारी । परम० १०॥ सफल काल स्वभावादि, यहां पर पुष्ट होते हैं । सुकारण कारणों का है, विमल गिरिराज जयकारी ॥
परम० ११॥ यहां पर आतमा होती, प्रमाणित सच्चिदानन्दी । नयों से • और प्रमाणों से, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० १२ ॥ अहेतु हेतु, वादों से, प्रतिष्ठित निर्विवादी है। परम गुण प्राप्त विधि हेतु, विमल
गिरिराज जयकारी ॥ परम० १३ ॥ स्वभाविक व्यंजना पर्याय, अनुभव खूब होता है । यहां पर आतमा का सत, विमल गिरिराज जयकारी । परम० १४ ॥ निजावस्था रमणता में, अनन्ते अर्थ पर्याया। यहां प्रत्यक्ष
होते हैं, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० १५ ॥ असत् सत् आदि * सत भंगे, अरथ पर्याय संवेदन । यहां होता विशदतर वर, विमल गिरि
राज जयकारी ॥ परम० १६ ॥ असत् सत वा उभयरूपे, त्रिभंगे व्यंजना में होती । यहां निज आत्म की अनुपम, विमल गिरिराज जयकारी । परम०
॥ १७ ॥ तपस्वी भव्य गुण योगी, यहां पर शुद्ध ध्यानी हो । 'अनन्ते । सिद्ध होते हैं, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० १८ ॥ चराचर धन्य
वे जगमें, यहां जो जीव रहते हैं । भवोदधिपार करते हैं, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० १९॥ विराधक और आराधक, यहां पर बन्ध अरु
मुक्ति । सहज में प्राप्त करते हैं, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० २० ॥ है. यहां यात्रा करें पूजा, चतुर्विध संघ भक्ति जो। सकल सुर शिव सुखी होवे, विमल गिरिराज जयकारी ॥ परम० २१ ॥ नरक में पापफल भोगे,
जलजलालाबानमन्वनयन्त्रमन्द्रमा
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