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विधि-विभाग
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सिद्धगिरि स्तुति सेत्रुजामंडण आदिदेव, हूं अहनीस समरूं ताससेवे । रायणतल पगलां प्रभुतणा, पूजी सफल फलसोहामणा ॥१॥
श्री सिद्धगिरि जयति . १ श्री शत्रु ञ्जयाय नमः। २ श्री पुण्डरीकाय नमः। ३ श्री सिद्धक्षेत्राय नमः। ४ श्री विमलाचलाय नमः ।। ५ श्री सुरगिरये नमः । ६ श्री महागिरये नमः । ७ श्री पुण्यराशये नमः। ८ श्री पर्वताय नमः । ९ श्री पर्वतेन्द्राय नमः । १० श्री महातीर्थाय नमः । ११ श्री शाश्वताय नमः । १२ श्री दृढ़शक्तये नमः । १३ श्री मुक्तिनिलयाय नमः । १४ श्री पुष्पदन्ताय नमः । १५ श्री महापद्माय नमः । १६ श्री पृथ्वीपीठाय नमः । १७ श्री सुभद्रगिरये नमः । १८ श्री कैलाशगिरये नमः । १९ श्री पातालमूलाय नमः । २० श्री अकर्मकाय नमः । २१ श्री सर्वकामपूरणाय नमः । ये सिद्धगिरि की खमासमणपूर्वक जयति देवे ।
श्री सिद्धाचल तीर्थराज चैत्यवन्दन परमातम पदची लहें, पुण्डरीक गणनाथ । चैत्री पूनम पर्वमें, पंचकोटि न मुनिसाथ ॥१॥ पुण्डरीक गुणधाम यह, पुण्डरीक गिरिराज । यातें पावन
तीर्थ जय, पुण्डरीक सिरताज ॥२॥ मंजुल मन मोहन जहां, पसरे परम । सुवास । पुण्डरीक गिरिराज यह, पुण्डरीक पद खास ॥३॥ कर्म विकट शठ
गजघटा, नाशे अपने आप । पुण्डरीक गिरिराज है, पुण्डरीक परताप ॥४॥ मोह महा धनतिमिर भर, झटपट होवे दुर । पुण्डरीक गिरिराज पर, पुण्डरीक गुण नूर ॥५॥ नमि विनमी विद्याधरा, दो कोटी मुनि संग । शत्रुञ्जय गिरिराज पर, कर कर्मों से जंग ॥६॥ शत्रुञ्जय कर आतमा, वर्ण गन्ध रस हीन । रूप अरूपी होगए, निजगुण सुख लयलीन ॥७॥ दश कोटी मुनि
संगमें, द्राविड वारिखिल्ल । गए सिद्धगति सिद्धगिरि, नाश किया भव : सल्ल ॥८॥ वैभाविक पर्याय से, विरहित हो कर जीव । स्वाभाविक पर्याय
पा, हुए सिद्धगिरि शिव ॥९॥ साढे आठ कोटि यहां, यदुपति कृष्ण
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