________________
LGmatathorisadekakkarles-a-CEskestreamistakoottotopiahtisatatatata
tatatahatetstatertare
जैन-रनसार
REAxar
mariawaad
Meditate
stantrikhalasirplcationalitientistatition-
l
प्रणयप्रगतमामयप्रकवनमत्रसप्रमाणपत्र प्रनयनत्रजनप्रमाणप्रत्रन
कुमार । प्रद्युम्नादिक शिव गए, कर भव सागर पार ॥१०॥ पांडव पांच * महाबली, विजयी हो संसार । सिद्धि वधू स्वामी हुए, अजरामर अवतार
॥११॥ परम जैन धर्मी परं, अन्य लिंग पद धार । नव नारद पाए यहां, शिव सुख अपरंपार ॥१२॥ द्रव्य समर्थक भावका, अन्तर उन्नत भाव । भावे भव भय नाश हो, यहां यही गुण दाव ॥१३॥ सब उन्माद व रोग के, हेतु धातुका शोष । करे द्रव्य संलेखना, यहां सदा सुख पोष ॥१४॥ निज गुण रोधक कर्म सह, राग द्वेषका रोध । यहां भाव संलेखना, करे स्वगुण । प्रतिशोध ॥१५॥ भविजन होते हैं यहां, शान्त कान्त शुचि अंग । पुण्यामृत कल्लोलमें, करके स्नान सुरंग ॥१६॥ ज्ञानावरण वियोगते, लोकालोक अशेष । जाने केवल ज्ञान पा, यहां अनन्त विशेष ॥१७॥ यहां दर्शनावरणका, होते नाश अनन्त । वस्तुगत सामान्यता, दर्शन होत अनन्त ॥१॥ पुद्गल संगत वेदनी, कुटिल कर्म हो नाश । अव्याबाध अनन्त सुख, होत यहां सुप्रकाश ॥१९॥ यहां मोहके नाश तें, हो मिथ्यात्व अभाव । गुण अनन्त सम्यक्त्व में, प्रकट रमण सुभाव ॥२०॥ चंचल नयन निमेष सम, आयुषका कर अन्त । पावें थिति भविजन यहां, अक्षय सादि अनन्त ॥२१॥ नाम कर्म इन्द्रिय विषय, रहें नहीं लवलेश । यहाँ निरंजन सिद्धता, अनुभव होत विशेष ॥२२॥ गौत्र कर्म नाशे यहां, प्रकटे समतो रूप । और अगुरु लघु योगते, सुखमय रूप अनूप ॥२३॥ अन्तराय के अन्तसे, पसरे वीर्य अनन्त । दानादिक शुभ लब्धियां, निज सत्ता विलसंत ॥२४॥ निज गुण ठाठ मिटा रहे आठ कर्म संयोग । तीर्थराज पे आतमा, उनका करे वियोग ॥२५॥ मित्रा तारादिक विशद, आठ दृष्टि उल्लास । योग अंगकारण यहां, पावें परम विकाश ॥२६॥ खेद खेप आदिक यहां, आठ दोष हो दूर। सहज महोदय हो यहां, परम योग अंकूर ॥२७॥ यम नियमादिक आठ विध, योग योग निर्धार । यहां आठ विध कर्मका, होता है संहार ॥२८॥ भव गुण आठों कर्मके, बन्ध सुदुःख निदान । उदय और उदीरणा, निज सत्ता सन्धान ॥२९॥ यहां निजातम वीर्य से, गुणठाणा क्रम रूढ़। भेद करें भव्यातमा, पावें गूढ़ निगूढ़ ॥३०॥ नहीं पांच संस्थान जहां, और। जलचन्द्रनयन्त्रणमा
i khitakalakNAGay-closluslati
b
iotiabilionkanyatilakatraRati