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जैन-रत्नसार
काठमप्रवन्धनपू
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बे कर जोड़ ए ॥१९॥ हय गय रहवर जुजुवा ए, लख चौरासी मन्दिर,
हुआ ए । लाख त्रि वाजिन घमघमें ए, बत्तीस सहस नाटक रमें ए ॥२०॥ * रूप जिसी सुरसुन्दरी ए, लक्षण लावण्य लीलाभरी ए । जंगम सोहग देहरी
ए, ऐसी चौसठ सहस अंतेउरीए ॥२१॥ अवरज ऋद्धि प्रकार ए, मणि कंचण ।। रयण भंडार ए । ते कहिवा कुण जाण ए, वपुवपुरे पुण्य प्रमाण ए ॥२२॥ इम चक्कीसर पंचमो ए, चोथो दुसम सूसम समो ए । वरस सहस पचवीस ए, सब पूरी मनह जगीस ए ॥२३॥ इण पर बिहुँ तीर्थकरा ए, चिर पालिय राज विविध परा ए । जाणी अवसर सार ए, बिहुं लीधो संयम भार ए ॥२४॥ बिहुँ खम दम धीरम धरी ए, बिहुं मोह मयण मद परिहरी ए। बिहुँ जिण झाण समाण ए, बिहुं पाम्या केवलज्ञान ए ॥२५॥ बिहुं देवहि कोडहि मैमहि ए, बिहुँ चोतीसै अतिसय सहि ए । समवसरण बिहुँ ठाण ए, बिहुँ योजन बाणि बखाण ए ॥२६॥ नाचे रणकत नेउरी ए, बिहुँ आगली इंद अंतेउरी ए। दृगमिग जोवे जग सहू ए, रंगहि गुण गावै सुर बहू ए ॥२७॥ बिहुँ सिर छत्र चमर विमला, बिहुं पगतल नव सोवन कमला । बिहुँ । जिण तणे विहार ए, नवि रोग न सोग न मारि ए ॥२८॥ बिहुँ उवयार भुवन भरी ए, बिहुँ सिद्धि रमणि सयम्वरी ए । बिहुँ भञ्जी भव फंद ए, बिहुँ उदयो परमाणंद ए ॥२९॥ इम बीजे ने सोलमो ए, जाणे चिन्तामणि सुर तरु समो ए।थुणि अति संझ विहाण ए, तिहां इह परिभव नविहांण ए ॥३०॥ बिहुँ उच्छव मंगल करणा बिहु संघ सयल दुरिय हरणा । बिहुवर कमल वनण वयणा, बिहुँ श्री जिनराय भुवण रयणा ॥३१॥ इम भगते भोलिमतणी ए, श्री अजिय शांति जिण थुय भणि ए । सरण बिहु जिण पाय ए, श्री मेरु नन्दन उवझाय ए ॥३२॥
इस प्रकार स्तवन कहकर जयवियराय. अरिहंत चेइयाणं. अणत्थ. कह निम्न स्तुति पढ़े।
उपयुक्त स्तवन अजितनाथस्वामी और शान्तिनाथरवामी का प्राचीन पुस्तकों में तीमगाथा का स्नवन न होने से यहां दे दिया गया है ये दोनों ही तीर्थकर शत्रुभय पर्वत पर । समवसरे थे।
ཛཱནཱཐཱ༩ ; ཙཱཎསཱ ཨཱརོཔོནཱ ཨཱ ཨཱིཔཧཱ ཨཱ་༔ ཤཱམསྶ ཡཱ་ནིཡམཎཱཡཱ, ཨཱ • *, ཨཱཨཱཡཱ ཙྩམས་རྒྱུ་ཡག ། ཀཱཡ། ཏོག, ད ནཱཨཱཡཱ པདག་
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