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विधि-विभाग
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. अन्त्य प्रार्थना अर्हद्वक्त्र प्रसूतं गणधर रचितं द्वादशांङ्गं विशालम् ।
चित्रं बह्वर्थ मुक्तं मुनि गण वृषभैर्धारितं बुद्धिमद्भिः ॥ मोक्षानद्वार भूतं ब्रत चरण फलं ज्ञेय भाव प्रदीपं । भक्त्या नित्यं प्रवन्दे श्रुत महमखिलं सर्व लोकैक सारम् ॥१२॥
(वंशस्थ छन्द) जिनेन्द्र* वक्त्रं प्रति निर्गतो वचो,
यतीन्द्र भूति प्रमुखैर्गणाधिपैः । श्रुतं धृतं तैश्च पुनः प्रकाशितं,
शरवेद सङ्ख्यं प्रणमाम्यहं श्रुतम् ॥१३॥
दिवाली पूजन विधि पहले पूजन के समय जहां पूजन करानी हो वहां सुन्दरचित्रों से एवं अन्यान्य सजावट की चीजों से सुशोभित कर लेना चाहिये। __शुभ मुहूर्त तथा चौघड़िया एवं शुभतिथि तथा शुभदिन और शुभ नक्षत्रमें प्रथम नवीन बही ( जिसको जितनी बहियों की आवश्यकता हो उतनी बहिये खोल ) उत्तम चौकी या पट्टे पर पूरब या उत्तर की दिशा में स्थापन करे पूजन करनेवाला हाथमें मौली बांधे और पत्तों की बन्दरवाल दरवाजों पर बांधे और नीचे दोनों तरफ घड़ों के ऊपर डाभ'' (नारियल ) रखे और अन्यान्य दिव्याभरणों से अलङकृत हो सुन्दर
पवित्र आसन को ग्रहण करे सामने एक उत्तम चौकी या पट्टा रख उसपर 1. चांदी की रकेवी में शारदाजी की मूर्ति या चित्र स्थापन करे । इसके बाद जल, चन्दन, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, फल श्रीशारदादेवी के पूजन * महोपाध्याय श्रीराज सोमगगि विरचते श्रुतस्कन्ध श्रुतपूजा सम्पूर्णमगमन।।
ये दोनां पूजायं प्राचीन ग्रन्थों से लिखी गई है इनमें नान पञ्चमा की शान्त्रपूजन किस नियमानुसार अप्टप्रकारी पूजन करनी चाहिये इसका खुलासा वर्णन उपरोक्त पूजा के श्लोकों न पाया जाता है अतः संस्कृत प्रेमियों को इससे लाभ लेना चाहिये।
फदा नारियल । मकान को भी सजाना चाहिये ।
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