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जैन-रत्नसार
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के समय प्रत्येक मन्त्रों को पढ़कर मूर्ति के सम्मुख चढ़ावे । पूजा कराने वाला विद्वान् तथा पूजा करने वाला एवं गन्ध चन्दनानुलिप्त तथा सुन्दर पवित्र वस्त्रों से विभूषित होना चाहिये इस तरह उपरोक्त सब सामग्री सम्पन्न हो जानेपर सुन्दर लेखनी तथा स्याही और दवात लेकर नीचे लिखे अनुसार बही में निम्नलिखित पदों को लिखें ।
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७४॥ वन्देवीरम् | श्री परमात्मने नमः श्री गुरुभ्यो नमः श्री सरस्वत्यै नमः, श्री गौतमस्वामीजी जैसी लब्धि, श्री केशरियाजीसा भण्डार, श्री भरतचक्रवर्त्ती जैसी ऋद्धि प्राप्त हो एवं बाहूबलजीसा बल, श्री अभय कुमारजीसी बुद्धि और कयवन्नासेठतना सौभाग्य एवं धन्नाशाली भद्रजीसी, सम्पत्ति प्राप्त हो ।
इतना लिखने के बाद नया वर्ष, नया मास एवं दिन तथा तारीख को सात लकीरों में लिखे इसके बाद १ से ९ तक पहाड़ की चोटी की तरह "श्री" लिखे अगर बही* छोटी हो तो ५ या ७ "श्री" लिखे |
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श्री श्री श्री श्री श्री श्री
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नया सम्वत् प्रारम्भ होता है ।
जैनियों को दिवाली के दिन ही नये बहीखाते बदलने चाहिये क्योंकि दिवाली से
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