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जैन-रत्नसार
अष्टापद ओली विधि चैत्र सुदी ८ से पूर्णमासी तक अष्टापदजी की ओली करने की। भी परम्परा प्रचलित है । इसमें प्रतिक्रमण देववन्दन देवपूजा इत्यादिक सब विधि 'नवपदजी की ओली' की तरह ही करते हैं। विशेषता इतनी ही है | कि 'श्री अष्टापद तीर्थाय नमः' की २० माला गिने । अरिहन्त पद के बारह गुणों को नमस्कार करे । बारह लोगस्स का कायोत्सर्ग करे । आयंबिल अथवा एकासणे का पञ्चक्खाण करे । पीछे पूर्णमासी के दिन अष्टापदजी पर्वत की स्थापना करके विधि युक्त चौवीस भगवान की पूजा करे एवं करावे ।
चैत्र और आसोज में इस तरह दो ओली करने से चार वर्ष में, एक ओली करने से ८ वर्ष में सम्पूर्ण होती है।
पारणे के दिन ओली का उद्यापन करे । साधर्मी वत्सल करे । यथाशक्ति दान देवे।
ज्ञान पञ्चमी पूजा विधि प्रथम पवित्र जगह में चौकी के ऊपर ज्ञान ( पैंतालीस आगम ) की स्थापना करनी। उसके आगे पांच नाजके पांच साथिये करे। पांच फल, पांच नैवेद्य, पांच फूल तथा पांच बत्तीका दीपक करे। अगर बत्ती अथवा धूप करे पीछे निम्न गाथा पढ़ेणमंति सामंत महीवणाह, देवाय पूयं सुविहेय पुचि ।
भत्तीयचित्तं मणिदामएहिं, मंदार पुफ्फ पसवेहिणाणं ॥१॥ तहेव सड्ढा मणिमुत्तिएहिं, सुगंधपुफ्फेहि वरंसि एहिं ।
पूयंति वदंति णमंति णाणं, णाणस्स लाभाय भवक्खयाय ॥२॥ इसको पढ़कर ज्ञान पूजा करे । इसी तरह द्रव्य पूजा करके भाव पूजा करे । भावपूजा में प्रथम खमासमण देवे । पीछे इरियावहियं०१ अणत्थ०२ कहकर एक लोगस्स का काउसग्ग करे। पार कर लोगस्स. पढ़े फिर बैठ
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१-पृष्ठ ३।२- पृष्ठ४।