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विधि-विभाग
। कर मुंहपत्ति की पडिलेहणा करे । तत्पश्चात् दो वन्दन देवे । बाद पांच * खमासमण देकर ज्ञान का चैत्यवन्दन करे । म नमस्कार कह णमुत्थुणं०२, जावंति चेइयाइं०, जावंत केविसाहु०, 1. नमोऽर्हत०, चैत्यवन्दन कह 'प्रणमू श्री गुरु पाय०' स्तवन कहे । फिर
जयवीयराय०३ अणत्थ० कहकर एक णमोक्कारका कायोत्सर्ग करे। पीछे निम्न थुई कहे :
देविंद बंदिय पएहि परूवयाणि,
णाणाणि केवल मणोहि मई सुयाणि । पंचावि पंचम गई सिय पंचमीए,
पूया तवो गुणरयण जियाणदितु ॥१॥ पीछे 'ज्ञान आराधवानिमित्तं करेमि काउसग्गं' ऐसा कह तस्सउत्तरी. अणत्य० पूर्वक एक लोगस्स का काउसग्ग पार कर 'बोधागाधं.' गाथा से कायोत्सर्ग पूर्ण करे । पीछेआभणि बोहियणाणं, सुयणाणं चेव ओहिणाणं च ।
तह मणपज्जव णाणं, केवलणाणं च पंचमयं ॥१॥ यह स्तुति कहे।
___ तदनन्तर खमासमण पूर्वक श्री मतिज्ञानाय नमः श्री श्रुत ज्ञानाय नमः श्री अवधिज्ञानाय नमः श्री मनः पर्यव ज्ञानाय नमः
श्री समस्त लोकालोक भास्कर केवलज्ञानाय नमः पांच नमस्कार करे । अगर समय हो तो ज्ञान५ की, ५१ खमाखमणपूर्वक नमस्कार करे जो कि पूर्व नवपद जी के गुणने में लिख आए हैं। “ॐ ह्रीं णमो णाणस्स" इस पद की २० माला फेरे और अन्त में
गुरु महाराज से ज्ञान पञ्चमी पर्व का व्याख्यान सुने। इसके बाद यदि 1 स्थिरता हो तो ग्यारह अंगों की सज्झाय पढ़े।
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१-पृष्ठ ६।२-पृष्ठ ५१३--पृष्ठ ६।४-पृष्ठ १८ गाथा ३।५-१८४ ।
*स्वर-
मस्तपदक
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