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विधि-विभाग ..
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किया होतो, २० पोसह, १२ उपवास करे । विधि से किया होतो तो १६ पोसह और १२ उपवास १ एकासण करे ।
अब तीसरा उपवास भावअरिहंत का तप १९ उपवास का नियम पूर्ण करके ३ वाचना लेवे पहले १ तेला करे पीछे ‘णमुत्थुणं.' से लेकर 'गंध हत्थीणं' तक पहली वाचना। फिर १६ आयंबिल करे 'लोगुत्तमाणं.' से लेकर 'धम्मवरचाउरंतचकवट्टीण' तक दूसरी वाचना लेवे। पीछे १६ आयंबिल करके 'अप्पडियवरणाण०' से लेकर 'सव्वे तिविहेण वंदामि' तक तीसरी वाचना लेवे । यह तीसरा उपधान ‘णमुत्थुणं पैंतीसड़ नामका है यदि विधि से किया हो तो ३५ पोसह १९ उपवास और अविधि से किया हो तो ३९ पोसह २३ उपवास करे।
अब चौथे स्थापना अरिहंत श्रुतस्कन्ध का उपधान अध्ययन तीन, जिसमें १ उपवास ३ आयंबिल 'अरिहंत चेइयाणं' से लेकर 'वंदणवत्तियाए, अणत्थ उससिएणं०, से अप्पाणं वोसिरामि तक पहली वाचना, यह स्थापना अरिहंत का चौथा उपधान चउकड़ नामका, जिसमें ४ पोसह २ उपवास १ एकासण करे।
नाम अरिहंत चउवीसत्थे का पहले तेला करे पीछे 'लोगस्स उज्जोअगरे.' से 'चउवीसंपि केवली तक पहली वाचना लेवे, फिर १२ आयंबिल करके 'उसभमजिअंचवंदे.' से पासंतहवडमाणं च' तक दूसरी वाचना, फिर १३ आयंबिलकर एवंमए अभित्थुआ० से 'सिद्धासिद्धिं मम दिसंतु' तक तीसरी वाचना लेवे। ये नाम अरिहंत चउवीसत्थेका अट्ठावीसड़ नामका तप विधिसे किया हो तो २८ पोसह २८ उपवास । या १५ उपवास १५ एकासण करे अविधिसे किया हो ३२ पोसह १७ उपवास १ एकासणकरे ।
सूत्रार्थ श्रुत स्कन्ध पहले १ उपवास पीछे ५ आयंबिल 'पुक्खरवरदीवड्डे०, से लेकर 'सुअस्स भगवओ करेमि काउसग्ग' तक एक वाचना, यह छहा उपधान सूत्रार्थक नामका छक्कड़,६ पोसह ३ उपवास १ एकासण करे।
अब सिद्धार्थक श्रुत स्कन्ध सातवां उपधान पोसहसहित १ चउविहार
ของใช้ในโรงได้ โดยใดใดใ ดใดใดใดใดใดในใจให้ได้ลดไปใช้ได้ใจดใจให้ใจให้ใคได้จากในปัจจใดใดใดใดใกลไกใจจดใกได้คนดูใดใดไวไกล
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