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जैन-रत्नसार
में ( णमोकार के और इरियाबही ० के ) प्रारम्भ में अवश्य 'नंदी' की स्थापना करनी और इन्हीं का उत्क्षेप भी नंदी में ही करना । शेप उपधानों में नंदी का नियम नहीं है । उसके बाद सुबहमें पहले उत्क्षेप करे उसके बाद पोसह सामायिक लेवे पीछे दो बन्दना देकर पञ्चकखाण करे फिर मुंहपत्ति पूर्वक सुख तपकी दो वन्दना देवे । उपधाप तप विधि
पंच मंगल श्रुत णमोकार उपधान करनेवाला, १२ उपवास, २४ आयंबिल ३५ णिव्वि, ४८ एकास करके १२ उपवासका नियम पूर्ण करे । पीछे णमो अरिहंताणं' से लेकर 'णमोलोए सव्व साहूणं' तक पांच अध्ययनोंकी वाचना एक दिनमें लेवे । उसके बाद 'एसी पंच ' णमोक्कारो०' से लेकर 'पढ़मं हवइ मंगल तक तीन अध्ययनों की दूसरे दिन वाचना देवे । फिर इस 'णमोकार के आठों अध्ययनों की एक ही वाचना एक दिनमें लेत्रे | ६ आयंबिल तथा तेला करे । तेलेके पारने में आयंबिल करे, फिर तेला तथा आयंबिल करे । इस प्रकार तीन तेले और ६ आयंबिल करें और आठों अध्यनों की एक ही दिनमें वाचना लेवे | इस तरह ८ आयंबिल तथा तीन तेले मिलाने से तेरह उपवास हुए | यदि पंच मंगल ' णमोक्कार २० का पहला उपधान अविधि से किया हो तो २० पोसह तथा १२ उपवास करें | और विधिसे किया हो तो १६ पोसह १२ उपवास १ एकास करे | यह वीसड़ नामका पहला तप है |
अब दूसरा तप 'इरियावहीं' के उपधानमें आठ अध्ययन तथा ३ अन्त की चूलिका इसमें भी पहले की तरह १२ उपवास आयंबिलादि करे। पीछे ‘इच्छाकारेण संदिसह॰' से लेकर 'जमे जीवा बिराहिया' तक एक वाचना लेनी चाहिये और 'एगिढ़िया ०' से लेकर 'ठामि काउसग्गं०' तक दूसरी वाचना हुई और एक ही वाचना लेनी हो तो पहले की तरह ८ आयंबिल तथा ३ तेले करके लेवे 'इरियाबही . ' श्रुतस्कन्ध का बीसड़ नामका तप अविधि से