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- जैन-रत्नसार उपवास करे, पीछे 'सिद्धाणं बुद्धाणं.' से 'तारेइ नरं व नारिं वा' तक एक वाचना लेनी चाहिये । यह सातवां उपधान माला का तप है। .
____अथ उपधान तप उत्क्षेप विधिः __प्रथम इरियावही• पडिक्कमे कह मुंहपत्ति पडिलेहे, दो वन्दना देवे पीछे खमासमण देकर उपधान वहन करनेवाला कहे—'पहले उपधान में पंच मंगल महाश्रुत स्कन्ध उक्खेवह' गुरु कहे-'उक्खेवामो।' पहले 'पंच मंगल उपधान महाश्रुत स्कन्ध उक्खेवावणियं नंदी पवेसा वणियं काउसग्गं करावेह' गुरु कहे 'करावेमो ।' पहले उपधान पंच मंगल महाश्रुत स्कन्ध उक्खेवावणियं नंदी पवेसा वणियं करेमि काउसग्गं,अणत्थ० काउसग्ग में लोगस्स. 'चंदेसुनिम्मलयरा' तक चिन्तवन करे । पार कर प्रकट लोगस्स कहें पीछे खमासमण देकर पहले उपधान पंच मंगल महाश्रुत स्कन्ध उक्खेवा वणियं चेइयाइ बंदावेह, गुरु कहे 'वंदावेमो।' वासक्षेपं करावेह,
गुरु कहे 'करेमो' पीछे वासक्षेप पूर्वक सम्पूर्ण चैत्यवन्दन करे । ऐसे सब । उपधानोंमें उत्क्षेप जानना चाहिये।इतना विशेष है कि उपधानोंका पहले दो
उत्क्षेप नंदी में ही करना चाहिये। शेष उपधानों के विषय में जब नंदी होय तब तो नंदी में करे और जो नंदी नहीं थापे तो प्रातः प्रवेश करने के दिन उत्क्षेप करना चाहिये,लेकिनजोजो उपधान वहन करे उस उसका नामोच्चारण करना चाहिये।
उपधान वाचन विधि संध्या को प्रथम चउब्बिहार का पञ्चक्खाण कर इरियावही कह, मुंहपत्तिका पडिलेहणकर, दो वन्दना देवे । “पहले उपधान पंचमंगल महा।
श्रुत स्कन्ध का प्रथम वाचन प्रतिग्रहण निमित्तं करेमि काउसग्गं, अणत्थ." । कहकर चारणमोकारकाकाउसग्गपारप्रगट लोगस्त कहे । फिर दो खमासमण
दे 'इच्छाकारेण संदिसह पहिले उपधान पंचमंगल श्रुतस्कन्ध प्रथम वाचन प्रतिग्रहणार्थ चंइयाई वंदावेह' । गुरु के 'वंदावेमो' कहने पर 'वासक्षेप करावेह' कहे। करावेमो कहनेपर पीछे गुरु वासक्षेप करे। तदनन्तर चैत्यवन्दन ཀཱསཱམཱམམྨནྟབམཝཱནྟཧཧཱཧབྷབནིཡཔཱརཱ ཨཱཝཏྟཾཨཱ༤ ཨམཱ ཨཱར་ཨཱརཱབཱ ཨ ཨཱ་མཱཡཱཀ མ དྡྷཾཨཱདཱག “' སཱམཱན པཏྟསམཱབཟཡཱམ། ཤཱཀྐབ དཨཱམཧཱམཧཱམཱཡསཙྩམཧཱཧཱཡཱ ཡྻ
न्ट्र कूटप्रन्यूनतन्ना लुन्ज कम्बल बूल्लू ननन वन्यून
प्रवद्र.प्र.प्र
PATRKAR-