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अर्थ:-- चित्रापृथ्वीतें सातसंनिवैयोजन ऊपरि तारागण हैं । ता पीछे ऊपर ऊपर सूर्य चंद्र नक्षत्र बुध शुक्र वृहस्पति मंगल शमीश्वर दश अस्सी तीन तीन तीन तीन चार चार योजन ऊंचे उत्तरोत्तर है ॥ १ ॥ तिनमें नक्षत्र मuses विषै अभिजित तौ मध्य में गमन करने वारो हैं । भर मूल सर्व बाहिर गमन करने वारो हैं । भर भरणी सर्वनिके नीचे गमन करने चारो हैं । अर स्वाति सर्वके ऊपरि गमन करने वारो है । अधैँ सूर्य विमानने जनावे हैं कि तप्त जो तपनीय ताकै समान है प्रभा जिनकी भर लोहित नामा मणिमयी है। पर अडतालीश योजनका इकसटिमा भाग प्रमाण चौडे लंबे हैं । अर यातें किंचित् अधिक त्रिगुजित है परिधि जिनकी अर चौबीस योजनका इकसठिवा भाग प्रमाण मोटे अर्धगोलकी है आकृति जिनकी अर सोलह हजार देवनिकरि धारण किये ऐसे सूर्यके विमान हैं । तिननैं प्रत्येक पूर्व दक्षिण पश्चिम 1 उत्तर भागनिनैं अनुक्रमकरि चार चार हजार देव धारण करें है । तिनकें ऊपरि सूर्यनामा देव बसै है । तिनकै प्रत्येक सूर्यप्रभा ॥ १ ॥ सुसीमा || २ || अर्चिमालिनी || ३ || प्रकरनामा चार चार अग्र महिषी हैं । मर प्रत्येक देवी चार चार हजार रूप करवा समर्थ है तिनके साथि दिव्यसुख अनुभव करते असंख्यातलाख विमाननिके अधिपति सूर्य
हैं ते परिभ्रमण करें है । बहुरि निर्मल तंतुका वर्ण के समान हैं वर्ण जिनके अर चिन्हमयी चन्द्रविमान छप्पन योजनका इकविसमा भाग प्रमाण चौडे लंबे अर अठ्ठाईस योजनका इकवीसमां भाग प्रमाण मोठे हैं। अर प्रत्येक षोडश हजार देवनिकरि पूर्व दक्षिण पश्चिम उत्तर दिशानिमें अनुक्रमकरि कुंजर वृषभ अश्व रूप विकारवान देवनिकरि धारण किये है । तिनकै ऊपरिचंद्रनामां देव वसै है । तिनकै प्रत्येक चन्द्रप्रभा सुसीमा अर्चिमालिनी प्रभंकरानामा अग्रमहिषी है अर प्रत्येक चारूं देवी चार चार हजाररूप करवा मैं चतुर है तिनकरि सहित सुख उपभोगरूप करे है । ऐसे असंख्यात लाख विमाननिके अधिपति चंद्रदेव ने हैं ते