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(१३) बिगर धर्मका मूल हाथमें लगता नहीं. कहा भी है- “ मिथ्यात्वादिमलीसमं यदि मनो बाह्येत्ति शुद्धोदकैः ॥ धौतः किं बहुशोपि शुद्ध्यति मुरापुरःप्रपर्णो घटः॥" मिथ्यात्वसे मलिन हुवा अंतकरण सम्यक्त्व विगर शुद्ध होता नहीं जैसे मद्यसे भरा हुवा घडा बाहरसे बार बार शुद्ध जलसे धोनेपर भी वह शुद्ध नहीं हो जाता उसके अंदरका सभी मथ बाहर गिरा देनेसे ही शुद्ध होगा वैसा ही तीन मुढता अष्ट मद रहित सम्यक्त्व होनेसे सत्यार्थ धर्मका मार्ग मिलता है. इससे सबसे पहले मिथ्यात्वका त्याग करना चाहिये तभी सत्यार्थ जैनागमपर अपनी श्रद्धा.लगती है।
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