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होती है ऐसेही सभी ग्रहों के संबंध में जानना चाहिए " इसका उत्तर हम ऐसा देते हैं- प्रभात कालकी गरमी और दोपहरकी गरमी व शामके वखतकी गरमी में तफावत रहाही करता हैं । प्रभात समय सब प्राणियों को समा नतः भरमी कम लगती है व दोपहर के समय सब प्राणियोंको गरमी समानतः अधिक लगती है फिर शाम बखत वह गम्मी कम हो जाती है । मेषराशीवालेको गरमी अधिक लगती है. वहही गरमी वृषभराशीवालेको कम लगती ऐसा कभी नहीं हो सकता.
देहली में धूपकालके वैशाख मासमें ११२ एकसौ बारह डिग्री गरमी रहती हैं; श्रावण मासमें ८० अस्सी डिग्री और पौष मासमें ६० साठ डिग्री अंदाज रहती हैं सो सभी प्राणियोंको समान जानी जाती हैं वैसेही हरएक जगे में अलग अलग प्रमाणसे गरमी गिनी जाती है परंतु मेष आदि राशीवालको अधिक और वृषभादि राशी वालेको गरमी कमती लगती है ऐसा जाननेमें आता नहीं है; सभीको थंडी या गरमी समान भासती है; अभ्यासके सबबसे केई लोग थंडी गरमी नादा सहन करते हैं केई कम सहन करते हैं। सरदी गरमीका बोना मेव वृषभादि राशी ऊपर लादना तिरर्थक है ।
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ये जैनी पंडित ब्राह्मणोंके शास्त्रको अपनाया करते हैं, ब्राह्मणोंका ज्योतिषशास्त्र और जैनज्योतिष शास्त्रमें कोई भी सूरतसे समन्वय करना चाहते हैं माने मिला देना चाहते हैं. उनको लगता हैं कि ब्राह्मणोंका ज्योतिषशास्त्र जैनियोंने नहीं लिया तो जैनियोंका ज्योतिषशास्त्र अधूरा रह जायगा; परंतु समझना चाहिये कि - निर्ग्रथाचार्य के रचेहुये प्रामाणिक ग्रंथोंके शिवाय अन्यमतिशास्त्र सब शास्त्राभास है । वे सब समयमूढता उपजावनेवाले है और मिथ्यात्व तरफ खैचनेवाले है । इस वास्ते मिथ्यात्व से बचनेका उपाय जैनियोंने अवश्य करना चाहिये । जैनधर्म में मिथ्यादर्शन सबसे बडा पाप है उसको छोड़ा