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________________ - - - - - - ताश भाषा १ भर नव उगणीसवां भागका माधा ९ इनको सम १९।२ च्छेद करि जोड २८ दोयका अपवर्तन किएं चौदह उगणीसवां भाग भर । सो याको किछू घाटि एक योजन मानि जो. किछू घाटि वीस हजार एकसौ छिन्व योजन प्रमाण निषध पर्वतकी पार्श्व भुजा हो है। सो इहां पार्श्वभुनावि उत्तर तटते चौदह हजार छसे इकईस योजन में यावत् सूर्य है तावत्र भरतक्षेत्रवाल वासीनीकौं दीसे पीछे न दीस तात पार्थ भुनावि इतनां घटाइ अव शेष किडू घाटि पनावनर्स पिचहत्तर योजन दक्षिण तटते निषधकै परि चार विष पर जाइ सूर्य अस्त होह ऐसा भावार्थ जानना अब हरिक्षके निषघ पर्वतके धनुपके सिद्ध भए अंक कहे हैं । तहां सातसात तीन तियासी इन अंकनके क्रमकरि ८३३७७ तियासी इनार तीनसे मतहतरि योजन तो हरि वर्षका धनुः है। बहुरि आठ छ। सतीस वारा इन इन संकनिके क्रमकरि १२३७६८ एक लाख तेईस हजार सातस पडसाठ योजना निषधका धनुप है ॥ ३९३ ॥ आग कहे ज दोनिक धनुपका प्रमाण तहां अब शेष अधिकका प्रमाण वा बार्श्वभुजाके अंक तिनकों कहे हैं माहवचंदुद्धरिया णवयकला पण य पदप्पमाणगुणा ॥ पासभुजी बोहसकादि वीससहस्सं च देसूणा ॥ ३९४ ॥ माधवचंद्रोद्धता नवककला नयपदप्रमाणगुणाः ॥ पार्श्वभुजः चतुर्दशकृतिः विंशसहस्रं च देशोनानि ॥३९४॥ अर्थ-हा पदार्थ नामकी संज्ञाकरि अंक कहे हैं सो भाषवचंद्र कहिए उगणीस जात माधव जो नारायण सो नग है । अश्यमान चंद्र पक है। इन दोऊ अंकनिकरि उगणीस भए तिनकरि उधृत नवकला!!
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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