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पीछे प्रकाश हो है । बहुरि जैसे जैसे चिराक मागाने चाल तसे तैस
आगाने तो प्रकाश होता जाय पोछते अंधकार होता भावे तैसें ही सूर्य विन जैसे जैसे आगे चले तैसे तैसें भाग ताप फैलता जाय पीछे पछै तम होता आवै है ॥ ३८३ ।।
अब ताप तमकी हानि वृद्धिको कहै हैंपणपरिधीयो भजिदे दसगुण सूरंतरेण जल्लद्धं ॥ .. साहोदि हाणिवढी दिवसे दिवसे च तावतमे ।। ३८४ ।। पंच परिधिपु भक्तेपु दशगुण सूर्यातरेण यल्लब्धं ॥
सा भवति हानिवृद्धिर्दिवसे दिवसे च तापतमसा ॥३८॥
अर्थः-पांचो परिधिवि दशगुणां सूर्य के अंतरालनिका भांग दिए जो लब्धिराशि होइ सो दिन दिन वि तापतमकी हानि वृद्धीका प्रमाण जाननां । तहां पंच परिधिनिवि विवक्षिन मेरुगिरि परिधि तहां साठि मुहूर्त निविर्षे इकतीस हजार छहसै वाईस योजन प्रमाण क्षेत्रवि गमन करै तौ दोय मुहूर्तका इकस ठित्री भागमात्र दिनका वृद्धिहानिका जो प्रमाण तामैं कितनां गमन करे ऐसे तिस परिधिप्रमाणकौं साठिका भाग दिएं दोयका इकसठि भाग करि गुणे दोय करि अपवर्तन किएं सत्रह योजन अर पांच सौ बाराका अठारहसै तीसवां भाग प्रमाण भावै सोई सूर्यके गमन मार्गनिका अंतराल एकसौ तियासी ताकौं दसगुणां किएं अठारहसै तीस ताका भाग विवक्षित मेरुगिरिक परिधि प्रमाणकौं दीए प्रमाण आवै तातें ऐसा विचार आचार्यनै ऐसा कह्या कि विवक्षित परिधिकौं दशगुणां सूर्योतरालका भाग दिएं ताप तमका वृद्धिहानिका प्रमाण मावै है । ऐसें सतरह योजन अर पांचसै बारहका योजन अर पांचसै बारहका अठारहसे तीसवां भाग प्रमाण दिन दिन प्रति उत्तरायण विर्षे ताप वधै है तम घटे है, दक्षिणायन वि. तम व