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माग सर्व परिधिनि वि तापतमके माणल्यावका विधान कहे
गिरिमतरमज्झिमबाहिरजलछहभागपरिहिं तु ।। साहिरिदेपुरठियमुहत्तगुणिदे दु तावतमा ॥ ३८२ ॥ गिर्यभ्यंतरमध्यमबाबजलपष्ठभागपरिधि तु ।। पष्ठिहिते मूर्यस्थितमुहुर्तगुणितं तु तापतमसी॥ ३८२ ॥
अर्थ:- महगिर पर सभ्यंतर बोथी अर जल वि लवण समुद्राका व्यासका हा भाग पर जो जो परिधिका प्रमाण होई ताको साठिका माग दीजिए अर सूर्य जिस मास विपं तिट तिस मास विर्षे जो दिन रात्रिका मुहूर्ननिका प्रमाण तीहकरि गुणिर तब ए तब तोहगास विर्षे जो दिन रात्रिका प्रमाण तीहकरि गुणिय नय तीह मास विर्षे तापतमका विषयभूतक्षेत्रका प्रमाण आवे है। ___ तहाँ मेरुगिरिका व्यास तो दस हजार योजन है । बहुरि जंबुद्वीप का व्यास १००००० वि दीपका चार क्षेत्र १८० को दोऊ पार्धनिका ग्रहणके गर्थि दुणांकरि ३६० घटाइए तब अभ्यनर वीथीका मूची व्यास निन्याणये हजार छसे चालीस योजन हो है ९९६४० बहुरि नार क्षेत्रका प्रमाण ५१० को आषाकरि २५५ या में द्वीपसंबंधी चार क्षेत्र १८० घटाइ अवशेष ७५ को दोऊ पार्श्वनिका ग्रहणके भर्थि दणा १५० करि जेबूद्वीपका व्याप्त १००००० विर्षे मिलाएं एक लाख एकसौ पचास योजन प्रमाण मध्यम वीथीका सूची व्यास
बहुरि लवण समुद्र संबंधी चार क्षेत्र ३३० को दोऊ पार्बनिका ग्रहणक अर्थि दुणा ६६० करि जंबू द्वीपका व्यास १००००० विर्षे मिलाएं एक लाख छसै साठि योजन प्रमाण वाह्य वीथीका सूची व्यास होई बहुरि लवण समुद्रका व्यास २००.०० को छहका भाग देह