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हो है । बहुरि तिसतें उरै मार्गविषै सूर्य मैं तिह दिन बारह मुहूर्तविपैं दोई मुहूर्तका इकसठवां भाग मिलाइए इतना दिन हो है । ऐसें हानि च जाननां । बहुरि तिस मुहूर्तका अहोरात्र है तामै जितने प्रमाण दिन होय सो घटाएं अवशेष तहां रात्रिका प्रमाण जाननां ॥ ३८० ॥
ऐसें कहे जु दिन रात्रि तिनविधै तौ ताप भर तमको वर्तमान काल है | दिनविपैं तौ ताप कहिए तावडा व है रात्रिवि तुमक कहिए अंधकार वर्ते है । तातैं तम तापका क्षेत्र प्रमाण निरूपण करत संता आचार्य श्रवण माह मासादिक निकै दक्षिणायन उत्तरायणको निरूप है
सावणमाघे सव्वमन्तरवाहिर पहहिहो होदि || सूरद्वयमासस्स य तावतमा सव्वपरिहीसु || ३८१ ॥ श्रावणमाघे सर्वाभ्यंतर बाह्यपथस्थितो भवति || सूर्य स्थितमासस्य च तापतमसी सर्वपरिधीषु ॥ ३८१ ॥
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अर्थ:- श्रावण मासविखैतौ सूर्य अभ्यन्तर मार्ग विषै तिष्ठे है । माघमास - विषै सूर्य सर्व तैं बाह्यमार्गविपैं तिष्ठे है । तिस सूर्य तिष्ठनेको जुमा तिन विषै ताप भर तमके वर्तनेका प्रमाण सर्व परिधिनिविषै स्यानां । तहा छह महिनांके एकसौतियांसी दिन होय तौ श्रावण आदि एक- आदिक महिनाके केते दिन होइ । ऐसें कीएं श्रावण भएं 1 साढातीस, भादवा भए एकसठ असोज भए सादा इक्याणवै कार्तिक मए एक सौ बाईस मार्गशीर्ष भए एकसौ साढानावन पौष भए एकसौ तिवासी दिन हो हैं सो एतौ दक्षिणायन के दिन है । बहुरि माघ भए इकसठ चैत्र भएं साढाइक्यानवे, वैशाख भए एकसौ बाईस ज्येष्ठ भएं एकसौ साढाबावन, आषाढ भए एक सौ तिवासी ए उत्तरायणके दिन हैं ।। ३८१ ॥