SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 878
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८३२ ] . * जैन-तत्व प्रकाश विनय, वैयावृत्य आदि के काम में लाने से जीर्ण हो गया है। अब इसका परित्याग करके नूतन दिव्य देवशरीर को प्राप्त करना है। इसमें विषाद का क्या कारण है ? पुराना वस्त्र उतार कर ही नया धारण किया जाता है, इसी प्रकार इस शरीर का त्याग करने पर ही देवशरीर की प्राप्ति हो सकती है। ऐसी दशा में इस जीर्ण-शीर्ण शरीर का त्याग करने में झिझकने की क्या जरूरत है ? समाधिमरण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर प्रश्न—मत्यु के आगमन से पहले ही आहार-पानी आदि का परित्याग करके मत्यु के सन्मुख होकर मर जाना अथवा मत्यु को आमन्त्रण देकर बुला लेना क्या आत्मघात नहीं है ? संलेखना से अपघात का महापातक नहीं लगता ? उत्तर-समाधिमरण और आत्मघात में बहुत अन्तर है। प्रथम तो, आत्मघात में इस बात का विचार नहीं किया जाता कि मेरे जीवन का अन्त सन्निकट आ गया है या नहीं ? मेरी मृत्यु शीघ्र ही अवश्यम्भावी है या नहीं ? दूसरे, आत्मघात कषाय के उदय से किया जाता है और उसमें हठात् प्राणत्याग किया जाता है । समाधिमरण उपसर्ग श्रादि विशेष कारण होने पर किया जाता है । वह कषाय के उदय से नहीं किया जाता, बल्कि कषाय जब उपशान्त होते हैं तब किया जाता है। क्रोध, मान, माया, लोभ आदि के वश में होकर अन्न पानी आदि का त्याग करके मरे अथवा क्रोध आदि से पागल होने पर आग में जल कर, पानी में डूब कर, विष का सेवन करके अथवा फाँसी आदि लगा करके मरे तो आत्मघात का पाप लगता है । किन्तु क्रोध आदि किसी भी कषाय के विना, सिर्फ अपनी आत्मा के कल्याण के लिए, संसार और शरीर से मोह-ममता का त्याग करके, चारों आराधनाओं के साथ, आहार आदि का ' त्याग करके, उपसर्ग, दुर्भिक्ष, असाध्य रोग आदि कारण उपस्थित होने पर
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy