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________________ ७७८] ® जैन-तत्त्व प्रकाश (१६) मषि-दावात, कलम, कागज, बही तथा जवाहरात, कपड़ा, किराना, ब्याज आदि संबंधी व्यापार की मर्यादा । (१७) कृषि-खेत, बगीचा, वाड़ी आदि की मर्यादा । प्रतिदिन काम में आने वाली वस्तुओं को यहाँ सत्तरह विभागों में इसलिए बाँट दिया गया है जिससे परिमाण करते समय भूल न हो जाय और सभी वस्तुओं की मर्यादा हो सके । दसवें व्रत का पालन करने के लिए श्रावक को इनकी मर्यादा करते रहना चाहिए। इनमें वाहन आदि कई वस्तुएँ ऐसी हैं जिनका संख्या से परिमाण किया जाता है और भोजन आदि कई ऐसी भी हैं जिनका वजन से परिमाण किया जाता है । कुछ वस्तुएँ ऐसी भी हैं जिनका संख्या और वजन दोनों से परिमाण किया जाता है, जैसे सचित्त द्रव्य, विगय आदि । जो वस्तु जिस प्रकार परिमाण करने योग्य हो उसका उसी प्रकार परिमाण करना चाहिए । परिमाण से अधिक वस्तु भोगने का एक करण तीन योग से प्रत्याख्यान करना चाहिए अर्थात् मन, वचन और काय से स्वयं न भोगे । कुटुम्ब का पालन-पोषण करने के लिए जो प्रारम्भ करना पड़े उसका आमार रहता है। प्रातःकाल जो-जो नियम ग्रहण करे, संध्या समय उन्हें स्मरण कर ले और संध्या के समय जो नियम ले उसे प्रातःकाल याद कर ले । मूल से कदाचित् कोई वस्तु अधिक काम में आ जाय तो उसके लिए 'मिच्छा मि दुक्काई' कहकर पश्चात्ताप करे । दयापालन व्रत एक अहोरात्रि या अधिक काल पर्यन्त के लिए सचित्त वस्तु को सेवन करने का, बिना यतना बोलने का, पगरखी आदि पहनने का, पुरुष की स्त्री का और स्त्री को पुरुष का संघटा करने का, व्यापार आदि सांसारिक कार्य करने का प्रत्याख्यान करें। अन्य के लिए बनाया हुआ सूझता
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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