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________________ ® गगार वर्ग श्रावनाचार ® [७७६ - - - आहार तथा अचिच साल का सेवन कर सारे दिन-रात (८ पहर) थाराथन में लगा रहे, कम से कम ग्यारह सामायिक अवश्य करे, इससे अधिक हो सकें तो अधिक करे। यह दयापालन व्रत कहलाता है । यह मी दसवें व्रत में अन्तर्गत है।* प्रत्याख्यान (१-नवकारसी का प्रत्याख्यान ) सूरे उग्गये नमुक्कारसहियं पञ्चक्खामि-असणं, पाणं, खाइम, साइमं, अएणत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं वोसिरे । नवकारसी के प्रत्याख्यान में दो श्रागार रखे जाते हैं—(१) भूलकर कोई वस्तु मुंह में डाल ली हो और (२) जैसे गौ का दूध निकालते समय मुंह में छींटा पड़ जाता है, उसी प्रकार कोई भी कार्य करते हुए कोई वस्तु अचानक मुंह में पड़ जाय तो आगार है। २- सी का प्रत्याख्यान खरे उग्गये पोरसियं+पञ्चक्खामि-असणं, पाणं, खाइमं, साइम, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं 'वोसिरे' । * श्री भगवतीसूत्र में तुगिया नमरी के पोक्खलजी आदि श्रावकों ने भोजन करके पौषधव्रत का पालन किया, ऐसा अधिकार चला है । वह दयापालन व्रत ही होना चाहिए। x दिन के १६ वें भाग को नवकारसी कहते हैं, तथा णमोकारमंत्र पढ़ कर जो प्रत्याख्यान पार लिया जाय उसे नवकारसी कहते हैं। पानी के सिवाय तीनों श्राहारों का ही प्रत्याख्यान करना हो तो 'पाणं' शब्द - नहीं बोलना चाहिए। + दिन के चौथे भाग को पोरसी कहते हैं ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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