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________________ *मेकाचार * सातवें व्रत के अतिचार [ ७४७ सातवें व्रत के भोजन सम्बन्धी पाँच और कर्म (व्यापार) सम्बन्धी पन्द्रह प्रतिचार हैं । इस प्रकार इस व्रत के अतिचारों की संख्या २० है । भोजन सम्बन्धी अतिचार इस प्रकार है: ――― (१) सचित आहार - जहाँ तक काम चल सकता हो, श्रावक को सचित्त वस्तु (वनस्पति, पानी) मात्र का त्याग कर देना चाहिए। काम न चल सकता हो या त्याग की इतनी मात्रा न बढ़ पाई हो तो मर्यादा तो करनी चाहिए | श्रावक ने जिस सचिच वस्तु का प्रत्याख्यान कर दिया है, वह वस्तु भोजन में आ जाय और भली-भाँति निर्णय न हो सके कि यह सचित्त है या अचित है, तब तक उसका उपभोग करना योग्य नहीं है । उपभोग करने से अतिचार लगता है। जिसने सचित्त वस्तुओं की मर्यादा की है, वह कदाचित् की हुई मर्यादा को भूल जाय तो जब तक स्मरण न हो तब तक सचित्त वस्तु का उपभोग न करे । अगर वह उपभोग कर ले तो उसे अतिचार लगता है । (२) सचित प्रतिबद्ध आहार - पका हुआ आम, खरबूजा आदि ऊपर से निर्जीव है और उसके अन्दर के बीज तथा गुठली सजीव हैं । वृक्ष से तुरत का तोड़ा हुआ गोंद, तत्काल पीसी हुई चटनी, तत्काल का धोवनपानी, इत्यादि वस्तुएँ सचिचप्रतिबद्ध कहलाती हैं। आम आदि की गुठली को अलग करने से पहले तथा चटनी आदि पर पूरी तरह से शस्त्र का परिणमन होने से पहले, सचित्त का त्यागी उनका उपभोग करे तो अतिचार लगता है । (३) अपक्व भक्षण --- आम, केले, आदि फल पकाने के लिए किसी घास आदि में दबाये हों किन्तु पूरी तरह पके न हों, हरी तरकारी पूरी पकी (सीझी) न हो, चने के बँट, गेहूँ की ऊंची, जवार के हुरड़े, बाजरे के पूँख,
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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