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________________ ® सागारधर्म-श्रावकाचार [७४५ उत्पन्न होते हैं। इसके अतिरिक्त वह असंख्य जीवों का पिएड होने से भी अभक्ष्य है। (१४) रात्रिभोजन-सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय से पहले किसी भी वस्तु को खाना-पीना बिलकुल अनुचित है। कोई-कोई रात्रि में केवल अन्न नहीं खाते किन्तु मिठाई-पकवान खा लेते हैं, वह भी अनुचित है, क्योंकि रात्रिभोजन अन्धाभोजन है । रात्रि में भोजन करने से अनेक त्रस जीवों का भक्षण हो जाता है और तरह-तरह के रोग उत्पन्न होते हैं। छिपकली, मकड़ी, सर्प की गरल आदि रात्रिभोजन में खाकर कई मर गये हैं, ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं। (१५) पंपोट फल-अनार, बैंगन, अंजीर, टमाटर आदि बहुत बीज वाले फल भी भक्षण करने योग्य नहीं हैं, क्योंकि जितने बीज उतने ही जीव उनमें होते हैं। (१६) अनन्तकाय*-(१) सूरणकन्द (२) वज्रकन्द (३) हरी हल्दी (४) अदरख (५) कचूरा (६) सवतारी (७) विराली (८) कुँवारी (8) थूहर (१०) गुड़बेल (११) लहसुन (१२) वंश करेला (१३) गाजर (१४) साजी वृक्ष (१५) पद्मकन्दी (१६) गिरकरणी (नये पत्ते की बन्ली), (१७) खीर लशुनं गंजनं चैव, पलाण्डं पिण्डमूल कः । मत्स्यो मांसं सुग चैव, मूलकंतु ततोऽधिकम् ।। वरं भुक्तं पुत्रमासं, न च मूलं तु भक्षितम् । भक्षणाज्जायते नक, वर्जनात्स्वर्गमिष्यते ॥ -पद्मपुराण अर्थात्-लहसुन, कांदा, (प्याज), मूलक, मांस और मदिरा का भक्षण नहीं करना चाहिए । कदाचित् दुष्काल आदि के प्रसंग में खाने को अन्न न मिले तो मृतक पुत्र का मांस भले खा ले किन्तु कंद का भक्षण तो कदापि नहीं करना चाहिए, क्योंकि कन्द आदि के भक्षण से नरक में उत्पन होना पड़ता है और उनका त्यागी स्वर्ग में जाता है। मनुस्मृति अ० ५ में कहा है कि जो शाक, फलादि विष्टामूत्र आदि के संसर्ग से उत्पनर हैं, वे अमच्य हैं।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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