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________________ ७४४ ] ॐ जैन-तत्व प्रकाश कपड़े में बाँधकर निचोड़ लेते हैं । निचोड़ते समय मक्खियों के अंडों का रस भी उसमें मिल जाता है । इस प्रकार घृणास्पद और पाप से पैदा होने वाला मधु खाने योग्य नहीं है। __(8) मक्खन-छाछ से अलग होने के बाद थोड़े ही समय में मक्खन में कृमि आदि जीवों की उत्पत्ति हो जाती है । उसमें लीलन-फूलन भी आ जाती है । इसके अतिरिक्त मक्खन काम-विकार को उत्पन्न करने वाला होने से भी अभक्ष्य है। (१०) हिम-बरफ कच्चे पानी का जमाया हुआ होने से असंख्य जीवों का पिण्ड है, अतएव अभक्ष्य है । (११) विष- जहरीले पदार्थ, जैसे अफीम, वच्छनाग, सोमल भंग गांजा, तमाखू आदि नशा उत्पन्न करने वाली वस्तुएँ भी अभक्ष्य हैं। इनमें कोई-कोई वस्तु शौक के लिए भोगी जाती है और कोई-कोई औषध के तौर पर। नशैली चीजें एक बार खाना शुरू करने पर फिर बहुत मुश्किल से छूटती हैं। शरीर को नष्ट कर देती हैं। इनके सेवन से क्षणिक जोश उत्पन्न होता है किन्तु परिणाम में अत्यन्त निर्बलता और मुर्दापन उत्पन्न करती हैं । नशैली वस्तुओं को सेवन करने वाला मनुष्य बलहीन तेजोहीन, रूपहीन बन जाता है । उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है । समय पर नशे की वस्तु न मिले तो बहुत ही दुःख होता है, तड़फता है और कभी-कभी अकालमृत्यु का शिकार हो जाता है । इसके अतिरिक्त अफीम आदि विषैले पदार्थ तैयार करने में अनेक त्रस जीवों का घात भी होता है । अतएव किसी भी प्रकार की नशैली वस्तु सेवन करने योग्य नहीं है। (१२) ओला (करक-करा-गड़ा)-आकाश से बरसने वाले श्रोले भी असंख्य अपकाय जीवों का पिण्ड और रोगोत्पादक होने के कारण खाने योग्य नहीं हैं। ___ (१३) माटी-गेरू, गोपीचन्दन, खड़िया, मैनसिल आदि मृत्तिका खाने से पथरी, पाण्डुरोग, उदरवृद्धि, मंदामि, बंधकोष आदि अनेक रोग
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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