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________________ ७४२] ® जैन-तत्त्व प्रकाश भी नहीं करना चाहिए । कुरानशरीफ के सुरायन पैरे में गोश्त को हराम बतलाया है । सुराह हज की ३६ वीं आयत में खुद अन्लाहताला ने फरमाया है कि गोश्त और लोहू मेरे पास नहीं पहुँच सकेगा, किन्तु एक मात्र परहेजगारी (पाप का डर और संयम) ही पहुँच सकेगा। इसी प्रकार बाईबिल के बीसवें प्रकरण में कहा है कि Thou shalt not kill अर्थात् जीवहिंसा मत करो। इस प्रकार सभी धर्मों के माननीय शास्त्रों में हिंसा करने का निषेध किया गया है और हिंसा किये बिना मांस मिल नहीं सकता, अतः मांस खाने की मनाई तो आप हो गई ! इसके अतिरिक्त मांस और रक्त अशुचि से भरा हुआ और दुर्गन्धयुक्त होता है । मांस क्षय, गंडमाल, रक्तपित्त, वात, पित्त, संधिवात, ताप, अतिसार श्रादि-आदि अनेक रोगों का उत्पादक होता है । धर्म से भ्रष्ट करने वाला, भविष्य में नरक गति में * ले जाने वाला और घोर अतिधोर दुःख देने वाला है। अतएव मांस सर्वथा अभक्ष्य है। तुम्हें पियाई मसाइ, खंडाई सोललगाणि य । खाइओ मि समंसाई, अग्गिवरणाइ णेगसो । -उत्तराध्ययन, अ. १६, ६६ अर्थात् परमाधामी देव नारक जीव से कहते हैं-तुझे मांस बहुत पिय था । मांस के टुकड़ों को तल-तल कर तू खाया करता था । तो ले, तुझे अब हम तेरे ही शरीर का मांस गरमागरम खिलाते हैं । यह तुझे खाना पड़ेगा! इस प्रकार कह कर उसके शरीर का मांस चीमटों से नोंच-नोंच कर और भाग में गरम कर-कर के खिलाते हैं। इस तरह मांसाहारी जीव की नरक में बड़ी दुर्दशा होती है। हिंसामूलममध्यमास्पदमलं ध्यानस्य रौद्रस्य यद्वीभत्सं रुधिराविलं कृमिगृहं दुर्गन्धिपूयादिकम् । शुक्रास्त्रक्रप्रभवं नितान्तमलिनं सद्भिः सदा निन्दितं, को भुङ क्ते नरकाय राक्षससमो मासं तदात्मगृहम् ।। अर्थात्-मास हिंसा का कारण है-हिंसा करने पर ही निष्पन्न होता हैं, अपवित्र है, रौद्र ध्यान का कारण है, देखने में वीभत्स है, खून से लथपथ होता है, कृमियों-सूक्ष्म जन्तुओं का घर है, दुर्गन्धयुक्त पीव आदि वाला होता है, शुक्र-शोणित से उत्पन्न होने वाला, अत्यन्त मलीन और सत्पुरुषों द्वारा सदैव निन्दित है। ऐसे मांस का भक्षण कौन समझदार करेगा।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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