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________________ * सागारधर्म-श्रावकाचार * [ ७४१ लोग घृणा की दृष्टि से देखते हैं। उसकी दशा बड़ी ही दयनीय होती है । जब नशे का उतार होता है तो माल खाने की इच्छा होती है। घर में पैसा नहीं बचता। तब स्त्री, माता आदि के गहने गिरवी रख कर माल खाता है। जब वह समाप्त हो जाते हैं तो उनसे झगड़ता है, मार-पीट करता है और उन्हें सताता है। शराबी को भक्ष्य-अभक्ष्य का भान नहीं रहता। शराबी का घर नरक सरीखा बन जाता है। उसे अकाल में ही मृत्यु का ग्रास बनकर नरक का अतिथि बनना पड़ता है । इस कारण सभी मतों में इसके सेवन का निषेध किया गया है। (७) मांस-मांस की प्राप्ति जीवहिंसा से ही होती है। कच्छप आदि जलमें रहने वाले प्राणी, गाय भैंस बकरे आदि ग्राम में रहने वाले प्राणी, हिरन, खरगोश, सुअर आदि जंगल में रहने वाले प्राणी, कबूतर, चिड़िया, कौवा आदि उड़ने वाले प्राणी जब मारे जाते हैं तभी मांस की निष्पत्ति होती है। सिर्फ पेट के गड़हे को भरने के लिए उपयोगी और उपकारी, दूध जैसे पौष्टिक पदार्थ देने वाले, ऊन आदि उपयोगी वस्तुएँ देने वाले और घासपात जैसी मामूली वस्तुएँ खाकर अपना जीवन-निर्वाह करने वाले बेचारे निरपराध जीवों का कत्ल करना कितनी बड़ी कृतघ्नता है ! प्राचीन काल में ऐसा रिवाज था कि कट्टर शत्रु भी अगर मुंह में । तिनका दवा ले तो उसे अभयदान मिलता था, तो फिर नित्य ही तिनके खाने वाले पशुओं को क्या पूरी तरह अभयदान नहीं मिलना चाहिए ? वैदिक धर्म में कहा है कि ईश्वर ने मच्छ, कच्छ, वराह और नृसिंह, यह चार अवतार पशुयोनियों में धारण किये थे। ईश्वर के ऐसे प्यारे पशुओं का घात करना कितना भयंकर पाप है ! विवेकवान् पुरुषों को इस बात पर अवश्य ही विचार करना चाहिए और कभी भी, किसी भी पशु का घात नहीं करना चाहिए और न मांसभक्षण ही करना चाहिए । इस्लाम धर्म के अनुयायी पेशाब को बहुत नापाक समझते है । कपड़े में उसका दाग न लग जाय, इस विचार से वे वजू करते हैं, मिट्टी के ढेले से गुप्तेन्द्रिय को साफ करते हैं। तो फिर पेशाब से उत्पन्न होने वाली वस्तु मांस का तो उन्हें स्पर्श
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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