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________________ * सागारधर्म-श्रावकाचार * [६८४ आजीविका को भंग कर देना भी विश्वासघात है। बेचारे मृक पशुओं का उपकार भी क्या कम है ? वे घास खाकर दूध, दही, मावा, मक्खन, घी मलाई, तक्र आदि बलप्रद और स्वादिष्ठ वस्तुएँ देते हैं और अपना पोषणतोषण करते हैं। मानव-जाति पर उनका यह असीम उपकार है । जिस माता का करीब एक साल दूध पिया जाता है, उसकी जीवन पर्यन्त सेवा की जाती है, तो फिर बचपन से लेकर जीवन के अन्तिम क्षणों तक जिसका दूध पिया जाता है, उस महामाता-गाय आदि की कितनी सेवा नहीं बजानी चाहिए ? इसी प्रकार एक माता का जो दो जन दूध पीते हैं वे परस्पर भाई का संबंध रखते हैं तो बैल, भैंसा, बकरा आदि की माता का दूध पीने वालों को उनके प्रति द्वेष-भाव धारण करना कहाँ तक उचित है ? कदाचित् माई तो बेईमान बन जाते हैं, मगर यह बेचारे पशु तो भाई से भी अधिक मददगार, नमकहलाल और उपकारक होते हैं । वे खेत में हल, बखर आदि खींच कर अन्न, वस्त्र आदि के काम में मदद देते हैं, कुएँ में से पानी निकालना, शक्ति से ज्यादा बोझ लाद दिया हो तो भी उसे खींचकर इच्छित स्थान पर पहुँचा देना, भूख प्यास सर्दी गर्मी खाड़ पहाड़ उजाड़ आदि के दुःखों की परवाह न करते हुए प्रत्येक कार्य में सहायता देना क्या कम उपकार है ? यह सुमित्र के समान प्रेम रखने वाले, सुशिष्य के समान मार-पीट को भी सहन करके सेवा करने वाले, विश्वासी नौकर के समान पहरा देने वाले, साधु के समान जितना मिल जाय उतने ही आहार पर सन्तुष्ट रहने वाले इन पशुओं के सिवाय इस जगत में और कोई विरला ही मिलेगा। ऊन के गरम वस्त्र और कस्तूरी आदि बहुमूल्य पदार्थ भी पशुओं द्वारा ही प्राप्त होते हैं । किंबहुना, उनके शरीर से उत्पन्न होने वाले गोबर, मूत्र आदि भी निकम्मे नहीं जाते हैं। घर की स्वच्छता और रोग के प्रतीकार करने के लिए वे उपयोगी होते हैं। मरने के बाद भी पशुओं के शरीर का कोई भाग निकम्मा नहीं जाता। उनके चमड़े से जूते बनते हैं, जो कंकर, कंटक और ताप से पैरों की रक्षा करते हैं। हड्डी खाद के लिए उपयोगी होती है। ऐसे महान् उपयोगी और उपकारी प्राणियों के साथ विश्वासपात
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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