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________________ * सागारधर्म श्रावकाचार [ ६४ जिस सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है, वह निसर्गरुचि सम्यक्त्व कहलाता है। जैसे - कलिंग देश के राजा करकंड सेना के साथ वन में गये । वहाँ एक रमणीक आम्रवृक्ष को देखकर उन्होंने उसकी मंजरी तोड़ी। उनकी देखादेखी सारी सेना ने मंजरी तोड़ ली। किसी ने पत्ते और किसी ने टहनियाँ तोड़ लीं । तब वह वृक्ष बिना पत्तों और मंजरियों का ठूंठ-सा दिखाई देने लगा । पीछे लौट कर राजा ने उसी वृक्ष को रमणीय देखा और उन्हें वैराग्य हो गया । सोचा - संसार की सारी शोभा क्षणभंगुर है ! (२) पांचाल देश के राजा महोत्सव के निमित सिंगारे हुए स्तंभ को देखकर प्रसन्न हुए । महोत्सव पूर्ण होने पर स्तंभ गिर पड़ा। उसे देख कर विरक्त हो गये । उन्होंने सोचा - संसार में पुण्य के सम्बन्ध से प्रतिष्ठा होती है और पुण्य समाप्त हो जाने पर ऐसी ( स्तम्भ जैसी ) स्थिति हो जाती है । (३) विदेहराज नमि के दाह ज्वर को उपशान्त करने के लिए उनकी सनियाँ चन्दन घिसने लगीं। उनके हाथों की चूड़ियों का शब्द सुन कर राजा को व्याकुलता हुई । तब रानियों ने हाथ में एक-एक चूड़ी रख कर और सब चूड़ियाँ उतार दीं। इससे शोर बन्द हो गया। यह देख राजा ने सोचा- संसार में संयोग ही अशान्ति का मूल है और एकाकीपन में शान्ति है । ऐसा सोच कर वे विरक्त हो गये । (४) गान्धार देश के राजा 'निग्गई' ने गायों का एक झुण्ड देखा । उनमें एक सुन्दर और पुष्ट सांड भी था । कुछ दिनों बाद वही सांड दुर्बल होकर गिर पड़ा | तबकोई भी उसके पास नहीं फटका । यह देखकर राजा को वैराग्य हो गया कि — संसार में सभी प्रेमी मतलब के हैं। (यह चारों प्रत्येक बुद्ध राजा दीक्षा धारण करके मोक्ष पधारे हैं ।) इसी प्रकार किसी अन्य जीव को कोई भी वस्तु देखने से, सुनने से, यति स्मरण ज्ञान प्राप्त हो जाता है, जिससे वह पूर्व भव में पढ़े हुए जीव आदि नौ पदार्थों का द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से यथातथ्य स्मरण करके
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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