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________________ * सम्यक्व * ६४१ और निरामय सुख रूप फल लगते हैं। इस वैभव के कारण वह संसार के ताप को शान्त करता है, सहारा देता है और सब प्रकार से सुखदाता होता है। (२) सम्यक्त्व धर्मनगर का कोट तथा द्वार है - सुन्दर भवन आदि के वैभव से युक्त नगर का कोट अगर मजबूत हो तो, वह नगर परचक्री के द्वारा पराभूत नहीं होता है, उसी प्रकार विविध प्रकार की करणी रूप ऋद्धि से परिपूर्ण धर्म रूपी नगर का सम्यक्त्व रूप कोट अगर मजबूत होगा तो पाखण्डी रूपी परचक्री उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेंगे। तथा जिस प्रकार द्वार से ही नगर में प्रवेश किया जा सकता है और वहाँ इच्छित वस्तु प्राप्त की जा सकती है, इसी प्रकार सम्यक्त्व रूपी द्वार से ही प्राणी धर्म रूप नगर में प्रवेश कर सकते हैं और आत्मिक-वैभव के भागी होकर परम सुख प्राप्त कर सकते हैं । (३) सम्यक्त्व धर्मप्रासाद की नींव है - जिस मकान या महल की नींव मजबूत होती है, उस पर इच्छानुसार मंजिलें बनवाई जा सकती हैं । फिर भी वह स्थिर रहेगा । इसी प्रकार सम्यक्त्व रूपी मजबूत नींव वाले धर्म रूपी महल पर इच्छानुसार करणी रूप मंजिल चढ़ाने पर भी वह अचल रह सकता है। (४) सम्यक्त्व धर्मरत्न की मंजूषा है— मजबूत मंजूषा ( तिजोरी) में अगर रत्न आदि मूल्यवान् पदार्थ रख दिये जायँ तो चोर उसे चुरा नहीं सकते, इसी प्रकार सम्यक्त्व अगर दृढ़ हो तो काम, क्रोध आदि चोर धर्मक्रिया रूपी रत्नों को हरण नहीं कर सकते। जैसे तिजोरी रत्न श्रादि की रक्षा का उत्तम स्थान है, उसी प्रकार धर्म की रक्षा का स्थान सम्यक्त्व है । (५) धर्म भोजन, सम्यक्त्व भाजन है— जैसे चावल, दाल, घृत, पकवान आदि भोजन को थाली, कटोरी आदि भाजन धारण कर रखते हैं, उसी प्रकार धर्मक्रिया रूपी श्रात्मिक गुणों के पोषक इट, मिष्ट भोजन को
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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