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________________ ६३२ ] * जैन-तत्त्व प्रकाश क्योंकि भूतकाल में हुए भले या बुरे पुरुषों के जीवन वृत्तान्त, तथा वर्त्तमान समय के ज्ञाता ज्ञानी जन धर्मकर्म की विचित्रता और काल की गहन गति 'मम श्रट्ठा दुवे कवोयसरीरा उवक्खडिया, तेहिं नो अहो, से अराणे परियासि मज्जारकडए कुक्कडमंस तमाहराहि, तेणं श्रट्टो ।' अर्थात् — मेरे लिए दो कपोत के शरीर तैयार किये हैं; वे नहीं लाना, किन्तु दूसरे के लिए मार्जारकृत कपोतमांस तैयार किया है, उसे ले आना । इस पाठ में जो कवोय (कपोत - कबूतर ), मज्जार ( मार्जार-बिल्ली), और कुक्कुड (कुक्कुट - मुर्गा) शब्द आये हैं, इनका भी स्थार्थ अर्थं न समझने के कारण लोग शंकाशील जाते हैं । किन्तु 'कपोत' शब्द से कबूतर के आकार वाले कूष्माण्ड (कोला नामक ) फल का अर्थ समझना चाहिए । मज्जार शब्द का अर्थ वायु रोग तथा विल्वफल का गिर समझना चाहिए | ( बिल्व वृक्ष के पत्र महादेवजी की मूर्ति पर चढ़ाये जाते हैं । उसी वृक्ष का फल यहाँ ग्रहण करना) कुक्कुड शब्द का अर्थ बिजौरा नामक फल है । वर्त्तमान काल में भी उदर-व्याधि होने पर तथा लोहिठाण की बीमारी होने पर बिल्ली के फल का गिर तथा कुक्कुड वेल के फल का गिर दिया जाता है । अनेक वैद्यों से ऐसा मालूम हुआ है । अतएव डाक्टर होरनल ने अंगरेजी भाषा के अनुवाद में कबूतर, घिल्ली, मुर्गी वगैरह अर्थ किये हैं, सो सूत्रज्ञान सम्बन्धी अनभिज्ञता के कारण किये हैं । उस अर्थ को सत्य नहीं समझना चाहिए। मनुष्य और तिर्यञ्च के नाम की अनेक वनस्पस्तियों के नाम शास्त्रों और प्रन्थों में देखे जाते हैं । यथा - (१) पन्नवणासूत्र के प्रथम पद में नागरुक्ख (नाग वृक्ष), मातुलिंग (बिजौरा ), बिल्लेय (बिल्ले वृक्ष ), तथा पिप्पलिया (वनस्पति भी है और पिपीलिका-चौटी को भी कहते हैं), एरावण (वनस्पति भी है और इन्द्र के हाथी को भी कहते हैं), गोवालिय (वनस्पति भी है और गोपालक - गुवाल को भी कहते हैं)। इसी प्रकार 'कागली' एक वनस्पति भी है और कौवे की मादा को भी कहते हैं । अज्जुण (अर्जुन) वृक्ष भी होता है और पाण्डवों के भाई का भी नाम है । इसी प्रकार साधारण वनस्पति नाम में भी अस्सकरणी (अश्वकर्णी), सिंहकर्णी आदि अनेक नाम हैं । 'शालिग्राम निघण्टुभूषणम्' वैद्यकोपयुक्त निघण्टु-कोष है । इसमें प्रत्येक औषधि के नाम बारह-बारह भाषाओं में दिये हैं। इस ग्रन्थ के (१) पृष्ठ ६-७ पर कस्तूरी के नाम मृगमद, मृगनाभि, अंडजा, मृगी गाजरी, श्यामा इत्यादि दिये हैं । इन नामों में 'मृग' शब्द आया है जो पशु का वाचक है । (२) पृष्ठ २८ पर तगर का अ हस्ती है । (३) पृष्ठ ४० पर शेलारस का नाम कपि, कपितैल दिया है। कपि का अर्थ बन्दर भी प्रसिद्ध है । (४) पृष्ठ ४८ पर इलायची का अर्थ महिला, कन्याकुमारी, कान्ता, बाला आदि दिया है। यह स्त्री के भी अर्थ होते हैं । (५) पृष्ठ ५३ पर नागकेसर का अर्थ नाग
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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