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________________ * जैन तत्व प्रकाश, अर्थात्-रागियों में तो शंकर ही शोभा पाते हैं, जिन्होंने वह के आधे भाग में पत्नी को धारण कर रखा है; और वीतरागों में जिन ही शोभा पाते हैं, जिन्होंने स्त्री-संसर्ग का सर्वथा त्याग कर दिया है, उनसे बढ़ कर वीतराग कोई और नहीं है। (११) नाभिस्तु जनयेत्पुत्रं, मरुदेव्यां महाद्युतिम् । ऋषभं क्षत्रियश्रेष्ठं, सर्वक्षत्रस्य पूर्वजम् ॥ -ब्रह्मपुराण अर्थात्-नाभि राजा और मरुदेवी के पुत्र ऋषभदेवजी सब क्षत्रियों में श्रेष्ठ और सब क्षत्रियों के पूर्वज हैं । (१२) प्रथमं ऋषभी देवो, जैनधर्मप्रवर्तकः ॥११॥ एकादशसहस्राणि, शिष्याणां धरिता मुनिः । जैनधर्मस्य विस्तारं करोति जगतीतले ।।१२।। -श्रीमालपुराण । अर्थात्-पहले श्री ऋषभदेव ने ११००० शिष्यों सहित जैनधर्म का जगत् में प्रचार किया। (१३) हस्ते पात्रं दधानाच, तुण्डे वस्त्रस्य धारकाः। मलिनान्येव वासांसि, धारयन्त्यल्पभाषिणः ॥ -शिवपुराण अर्थात्-हाथ में पात्र और मुख पर वस्त्र धारण करने वाले, मलिन वस्त्र धारण करने वाले और थोड़ा बोलने वाले जैन मुनि होते हैं । ___ उपरिलिखित प्रमाणों से भी सिद्ध होता है कि जैनधर्म के (इस युग के) आदि प्रवर्तक श्री ऋषभदेव भगवान् थे । कुछ अज्ञान लोगों का कथन है कि जैनधर्म के प्रवर्चक गौतमऋषि थे पर उनका यह कथन प्रमाणों से सिद्ध नहीं होता। अब प्राचीन इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ चुका है और ऐसी ऊलजलूल मान्यताओं को कोई भी विद्वान स्वीकार नहीं कर सकता । गौतम ने तो जैनधर्म के चौवीसचे तीर्थकर भगवान् महावीर से दीक्षा ग्रहण की थी।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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