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________________ सम्यक्त्व* [६१७ (१४) गौतमोऽपि ततो राजन् ! गतो काश्मीरके पुनः। महावीरेण दीक्षां च धत्ते जैनमतेप्सिताम् ।। ---श्रीमालपुराण, अध्याय ७३ अर्थात्-वशिष्ठ ऋषि मान्धाता से कहते हैं-राजन् ! गौतम काश्मीर देश में गये और उन्होंने महावीर से दीक्षा लेकर इच्छित अर्थ को सिद्ध किया। (१५) द्विसहस्रा गता राजन्, अन्दा कलियुगो यदा । तदा चातो महावीरो, देशे काश्मीरके नृपः। गौतमोऽपि तदा तत्र, धारितु जैनधर्मकम् । श्यिा वाक्येन सन्तुष्टो, जगाम श्रीनिकेतनम् ॥४॥ –श्रीमालपुराण, अ० ७४ अर्थात्-हे राजन् ! जब कलियुग के दो हजार वर्ष बीत गये तब काश्मीर देश में महावीर उत्पन्न हुए। उस समय लक्ष्मी के कहने से गौतम जैनधर्म को धारण करने के लिए गये।। (१६) भो भो स्वामिन् ! महावीर- दीनां देहि मम प्रभो ! जैनधर्म गृहीतुमागतस्तव सनिधी ।।* अर्थात्-गौतम बोले-हे स्वामिन ! हे प्रभो महावीर ! मुझे दीक्षा दीजिए । मैं आपके पास जैनधर्म ग्रहण करने के लिए आया हूँ। * श्रीमालपुराण के कथन के अशुमार महावीर का काश्मीर में उत्पन्न होना, गौतम का दीक्षा लेने के लिए लक्ष्मी के कहने से वहाँ जाना, ऐतिहासिक सचाई नहीं है । तथापि यहाँ सिक-यही बताना अभीष्ट है कि गौतम जैनधर्म के संस्थापक नहीं थे। यह बात वैदिक पुराण के कथन से ही सिद्ध करने के लिए यह उद्धरण दिये गये हैं। भ० महावीर की जन्मभूमि आधुनिक विहार प्रान्त है । भ० महावीर के काश्मीर में जाने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। सम्पादक
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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