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________________ * सम्यक्त्व ** पाँचवाँ बोल - दूषण पाँच [ ५८६ जैसे वात, पित्त, कफ आदि दोषों का उद्भव होने से शरीर रुग्ण होता है, उसी प्रकार निम्नलिखित पाँच दोषों से सम्यक्त्व रुग्ण अर्थात् दूषित हो जाता है: (१) शंका - श्रीजिनप्रणीत शास्त्र के कथन में संशय धारण करना; जैसे:- (१) एक बूँद पानी में, घड़े भर पानी में और समुद्र के पानी में भी श्रसंख्यात असंख्यात जीव बतलाये हैं । यह कथन किस प्रकार सच्चा माना जाय ? क्योंकि जब एक ही बूँद में असंख्यात जीव हैं तो घड़े भर पानी में असंख्यात से भी ज्यादा जीव होने चाहिए और समुद्र भर पानी में और भी अधिक होने चाहिए | कहाँ एक बूँद और कहाँ समुद्र १ ऐसी शंका करने वाले को समझना चाहिए कि दो को भी संख्या कहते हैं, हजार को भी संख्या कहते हैं, लाख, करोड़ और परार्ध को भी संख्या कहते हैं। दो में और परार्ध में कितना अन्तर है १ फिर भी इन्हें एक शब्द कहते हैं । इसी प्रकार एक बूँद में और समुद्र में बहुत अन्तर है । एक बूँद में जितने जीव हैं, उनकी अपेक्षा घड़े भर पानी में असंख्यात गुणा अधिक हैं, समुद्र के पानी में इससे भी श्रसंख्यातगुणा अधिक जीव हैं; फिर भी सामान्य रूप से उन सभी में असंख्यात ही जीव कहलाते हैं, क्योंकि श्रसंख्यात के असंख्यात विकल्प हैं । दूसरी आशंका यह की जाती है कि पानी के छोटे से बूँद में असंख्यात जीवों का समावेश किस प्रकार हो सकता है ? ऐसी शंका करने वालों को समझना चाहिए कि जैसे एक करोड़ औषधियों का अर्क निकाल कर तेल बनाया गया हो तो उस तेल के एक बूँद में ही करोड़ औषधियों का समावेश हो जाता है, जब मनुष्य के बनाये हुए पदार्थ में भी इस प्रकार रूपी पदार्थो का समावेश हो जाता है, तो फिर कुदरती वस्तु के एक बूँद में असंख्यात जीवों का समावेश होने में क्या आश्चर्य है ? कुछ भी आश्चर्य की बात नहीं है । असंख्यात तो क्या, अनन्त का भी समावेश हो सकता है।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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