SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 599
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * मिध्यात्व * [ ५५३ बने पदार्थ रखने वाले, पटुकाय के जीवों के श्ररक्षक, महाक्रोधी, महामानी, दगाबाज, महा लालची, निन्दक व्यक्ति को साधु मानना मिथ्यात्व है । कितने लोग मानते हैं कि हम तो वेष को वन्दना करते हैं। ऐसे भोले लोगों की विचारना चाहिए कि बहुरूपिया या नाटककार पात्र यदि साधु का वेष बनाकर श्री जायं तो क्या वह वन्दना करने योग्य हो जायगा ? क्या उसे साधु कहीं जा सकता है ? कदापि नहीं। 'अपने तो गुण की पूजा, निगुने को पूजे वह पंथ ही दूजा' इस प्रकार का विवेक रखना चाहिए । 1 कितनेक लोग कहते हैं कि पंचम काल में शुद्धाचारी साधु हैं ही नहीं । ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि स्वयं भगवान् ने फरमाया है कि पाँचवें आरे के अन्त तक अर्थात् २१००० वर्षों तक मेरा शासन चलेगा । श्रीभगवतीमें यह स्पष्ट उल्लेख है । यह आशीर्वाद क्या कभी मिथ्या हो सकता है ? कदापि नहीं। फिर अभी तो अढ़ाई हजार वर्ष भी पूरे नहीं हुए हैं। इस समय भी बड़े-बड़े महात्मा, महात्यागी, महावैरागी साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका इस भाव में विद्यमान हैं और पंचम आरे के अन्त तक चार जीव एकावतारी रहेंगे । अतः हीनाचारियों के चक्कर में न पड़ते हुए सच्चे साधुओं को ही साधु मानना चाहिए । १६ - जीव को अजीव श्रद्धना - मिथ्यात्व पर्याप्त प्रा, योग उपयोग आदि जो लक्षणे शास्त्र में जीव के बतलाये हैं, उनसे युक्त एकेन्द्रिय आदि जीवों को जीव न मानना मिथ्यात्व है । कितने लोगों का कहना है कि सब पदार्थ मनुष्य के लिए ही उत्पन्न किये हैं। अगर यह कहना सत्य है तो सब वस्तुएँ स्वादिष्ट, आरोग्यप्रद, सुखद और सुन्दर ही क्यों नहीं बनाई ? मगर हम तो कटुक, कंटक, कठिन रहली वस्तुएँ भी संसार में देखते हैं। ऐसी वस्तुएँ भगवान् ने क्यों बनाई ? क्या ईश्वर किसी के साथ मित्रता और किसी साथ शत्रुता रखता हैं? इसके अतिरिक्त जैसे मम और फल-फूल आादि तुम्हारे लिए उत्पन वि हैं, उसी प्रकार सिंह व्यान आदि के खाने वर तुम्हें उत्पन्न
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy