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________________ * जैन-तत्त्व प्रकाश * प्रतिपक्षी - अजी, ईश्वर ने तो एक तमाशा बनाया था, उसे विखेर " ५३६ ] डाला । इसमें हिंसा किस बात की १ पूर्वपक्षी - - तब तो ईश्वर तमाशगीर हो गया जिससे उसे पाप भी नहीं लगता । भाइयो ! पाप भी परमेश्वर का मित्र हो गया, जो उसे नहीं लगता । औरों को लगता है । ( प्रतिपक्षी चुप) पूर्वपक्षी - अच्छा, प्रलय के बाद जीव सब कहाँ चले जाएँगे ! प्रतिपक्षी - जो भक्त हैं सो तो ब्रह्म में मिल जाएँगे और दूसरे जीव माया में मिल जाएँगे । पूर्वपती - प्रलय होने के बाद माया, ब्रह्म से अलग रहेगी अथवा ब्रह्म में मिल जाएगी ? अगर माया पृथक् रहती है तो वह भी ब्रह्म की तरह नित्य हुई। अगर ब्रह्म में मिल जाती है तो फिर सब जीव भी ब्रह्म में मिल गये । फिर भक्त और दूसरों में फर्क हा कौन-सा रहा ? सभी ब्रह्ममय हो गये । फिर मोक्षप्राप्ति के लिए शम, दम, जप, तप श्रादि क्यों करने चाहिए १ क्योंकि महाप्रलय होने पर तो सब ब्रह्म में मिल ही जाएँगे और सब ब्रह्म रूप ही हो जाएँगे । ( प्रतिपक्षी चुप) पूर्वपक्षी - पुनः नयी सृष्टि उत्पन्न हामी क्या ? प्रतिपक्षी - हाँ, ब्रह्मा का महाकल्पकाल बीतने के बाद ब्रह्मा की रात्रि पूरी होगी और दिवसोदय होगा, तब ब्रह्मा को पुनः इच्छा होगी और फिर नयी सृष्टि उत्पन्न होगी। पूर्वपक्षी— अच्छा, तब पहले वाले जीव ही सृष्टि में आएँगे या नये जीव उत्पन्न हो जाएँगे ! वही पहले वाले जीव फिर सृष्टि में आते हैं, ऐसा कहते हो तो यह भी मानना पड़ेगा कि वे जीव ब्रह्म में लीन — शामिल - नहीं हुए थे । किन्तु सब पृथक्-पृथक् रहे थे। तो आपका यह कथन मिथ्या हुआ कि जीव ब्रह्म में मिल जाते हैं। अगर आप नये जीवों की उत्पति
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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