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________________ ५३४ ] 8 जैन तत्त्व प्रकाश सब एकदम बना डाली । यह दोनों ही कथन आपके शास्त्र से असंगत हैं । अगर आप यह मानें कि किसी को श्राज्ञा देकर सृष्टि बनवाई तो उस समय दूसरा कौन था ? उसका नाम तो बतलाइए ? और बनाने वाला भी उपादान कारण रूप सामग्री कहाँ से लाया ? ( प्रतिपक्षी चुप ) अच्छा, जब सृष्टि बनाई तो सब अच्छी-अच्छी वस्तुएँ ही बनाई अथवा अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की वस्तुएँ बनाई ? अगर सब अच्छीअच्छी वस्तुएँ बनाई कहते हो तो बुरी वस्तुएँ बनाने वाला कोई और हुआ । अगर उसी ने दोनों प्रकार की वस्तुएँ बनाई तो सिंह, खटमल आदि प्राणी तथा जहर, काँटा आदि दुःख देने वाली वस्तुएँ क्यों बनाई ? ( प्रतिपक्षी चुप ) अच्छा, पहले जीव को निर्मल बनाया या पापी बनाया ? अगर निर्मल कहते हो तो उसे पाप कैसे लग गया ? इससे तो यही सिद्ध होता है कि बनाते समय तो बना दिया, फिर ईश्वर के हाथ की बात नहीं रही ! अगर यह कहो कि ईश्वर ने ही पीछे पाप लगा दिया तो बेचारे जीव के पीछे पाप लगा कर क्यों उसे दुखी किया ? इससे तो आपका ईश्वर निर्दय सिद्ध होता है । इस प्रकार विचार करने पर ब्रह्मा को सृष्टि का कर्त्ता कहना प्रमाण से सिद्ध नहीं होता है । प्रतिपक्षी – अजी, सब अपने-अपने कर्म के अनुसार सुख-दुःख पाते हैं । पूर्वपची - तब ब्रह्मा ने कुछ नहीं किया । ब्रह्मा सृष्टि का कर्त्ता नहीं रहा । विष्णु को सृष्टि का पालनकर्त्ता कहते हो, उस पर भी जरा विचार करो । रक्षणकर्त्ता या पालनकर्त्ता उसी को कहते हैं जो दुःख न प्राप्त होने दे । किन्तु ऐसा तो सृष्टि में दृष्टिगोचर नहीं होता । यहाँ तो प्रत्यक्ष ही अनेक जीव चुधा, तृषा, शीत, ताप, मार, ताड़ना आदि अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक दुःखो से पीड़ित हो रहे हैं। सुखी तो बहुत थोड़े दिखाई देते हैं। तब विष्णु रक्षक कैसे हुए १.
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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