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________________ 140 Thie १ कृष्ण बेश्या २ बेश्या ३ कापोत बेश्या तेजो खरया ५ पद्म पोरवा ६ शुक श्या बेरवा के वर्ण गन्ध रस और स्पर्श गन्धदुर्गंध रस-कटु-, स्पर्श तीपण वर्षा-दरा गन्ध- दुर्गन्ध, रसठीखा, स्पर्श सुरदरा, गन्ध- दुर्गन्ध, रस- कषायला, स्पर्श-- कठिन वर्ण रक्त गन्ध-सुगन्ध, रस-मीठा, स्पर्श-गरम -पोछा गन्ध-सुगन्ध, रस-मीठा, स्पर्श-कोमण, वर्ण- श्वेत गन्ध-सुगन्ध, रस-मधुरा, स्पर्श - सुकोमल लेश्या के लक्षण पांच श्रव का सेवन स्वयं करे अन्य के पास करावे, ३ योग ५ इन्द्रियों को छुट्टी र तीन परिणाम से दुकाना का आरम्भ करे, हिंसा करता अचके {डरे] नहीं, जुन परिणामी दोनों लोक के दुःख से डरे नहीं । ईर्षावंत, अन्य के गुण सहन कर सके नहीं, स्वयं तप करे पहीं, अन्य को तप करने दे नहीं स्वयं ज्ञानाभ्यास करे नहीं, अन्य को करने दे नहीं मिव कपटी, जना रहित, रख द महा भानसी, फक्त आपके ही सुख चाहे । बांका बोले, बांका घले, अपने दुगु ढके, अन्य के प्रगट करे, कठिन वचन बोले, चोरी करे, अन्य की संपदा देख रे । चारों कषाय पतली की, सदैव उपशांत कथायी त्रियोग वश में रखे, कम बोले, दमितेन्द्रिय बेश्या कीजघन्य उत्कृष्ट स्थिति शार्तध्यान रौद्रध्यान त्यागे. धर्म ध्यान शुक्ल ध्यान ध्यावे, रागद्वेष पतले किये या निवृत, मिलेनियसमिवियान्यस्त रागी संयमी या वीतरागी, जघन्य अन्तर मुहूर्त २३ कष्ट सागरोपम जघन्य अन्तर मुहूर्त उत्कृष्ट १७ सागरोपम जघन्य अन्तर म्याची स्थिर स्वभावी, सरल, कुशल रहित, विनीत, ज्ञानी, दमितेन्द्रिय, दृढ धर्मी, मुहूर्त उत्कृष्ट २ प्रिय धर्मी, पाप से डरने वाला | सागरोपम जघन्य अन्तर मुहूर्त उत्कृष्ट ७ सागरोपम जघन्य अन्तर मुहूर्त उत्कृष्ट १० सागरोपम जघन्य अन्तर मुहूर्व उत्कृष्ट २ सागरोपम लेश्या की जघन्य गति भुवनपति बा व्यन्तर, अनार्य मनुष्य भुवनपति बारा व्यन्तर, कर्म भूमि मनुष्य भुवनपति, बाण व्यन्तर, अन्तर द्वीप मनुष्य पृथ्वी, पानी, वन स्पति, जुगल मनुष्य तीसरा- स्वर्ग छठे से बारह स्वर्ग तक बेश्या की मध्यम गति ५ स्थावर ३ विकलेन्द्रिय तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय १ स्थावर ३ विकलेन्द्रिय तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय ५ स्थावर ३ विकलेन्द्रिय वियच पचेन्द्रिय भुवनपति बाण व्यन्तर जोतिषी शिव पंचेन्द्रिय चौथा स्वर्ग ४] अनुत्तर विमान लेश्या की उत्कृष्ट गति पांच को सातवीं, नर्क तीसरी चौथी नरक प्रथम दूसरी तीसरी नरक प्रथम दूसरा स्वर्ग, पांचवां- स्वर्ग सर्वार्थ सिद्ध विमान ६ लेश्या का यन्त्र | * सत्र धर्म [ ४८१ 愿
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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