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________________ ४८९ जन-तत्त्व प्रकाश* RAILERT ::: - . .. - Enc r em () र पर पार प्रमाण-प्रत्य~-कर्मों का आदरण कुछ पतला पड़ने के प्राशुभ तिमीला हा और शुभ प्रकृतियों का उदय होने पर मोदी का सम्यग्ज्ञान आदि सद्गुणों का उद्भव होता है। फिर क्रमशः तीर गोठ उपार्जन करके तथा चार धाति कमों का नाश करके कवलज्ञान की प्राप्ति होती है। यह प्रत्यक्ष प्रमाण से मोक्ष समझना चाहिए। अ -..." और बारिश हनीय का क्षय होने से अनुमान करना कानिनु हुआ है, अथवा यह जीव मोक्षगामी है। उ स जले हुए बीज को बोने से अंकुर की उत्पत्ति नहीं होती, उसी प्रकार -बीज के भस्म हो जाने पर जन्म-मरण रूप संसार की उत्पत्ति नहीं होती। जो घृत डालने से अनि प्रदीप्त होती है, उसी प्रकार वीतराम में शान आदि गुण प्रदीप्त होते हैं। इत्यादि उपमाओं से सिद्ध भगवान को जानना । आगमप्रमाण-पागम में कहे अनुसार सूत्रोक्त कर्मप्रकृतियाँ ज्यों-नो क्षय को प्राप्त होती हैं, त्यों-त्यों श्रात्मा गोहाभिमुख होता हुआ उम्भ भरधा को प्राप्त करता जाता है। उन्नति की यह क्रम-परम्परा गुणस्थानकों के रूप में आगम में वर्णित है। चौदह गुणस्थानक इस प्रकार हैं: (१) मिथ्यात्वगुणस्थानक-अनादि काल से मिथ्यात्व गुणस्थान में वर्तमान जीव वीतराग भगवान् की वाणी से न्यून, अधिक या विपरीत श्रद्धा, प्ररूपणा और स्पर्शना करता है। उसके फलस्वरूप ४ गति, २४ दंडक और ८४ लाख योनियों में भ्रमण करते-करते अनन्तानन्त पुद्गलपरावर्तन पूरे करता है। (२) सास्वादन गुणस्थान-दर्शनमोहनीय कर्म का उपशम करके सम्यक्त्व प्राप्त कर लिया। किन्तु अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् उसी प्रकृति का उदय होने पर पतन हुआ-सम्यक्त्व से गिरा। सम्यक्त्व से गिर जाने के बाद और मिथ्यात्व की भूमिका का स्पर्श करने से पहले की जीव की अवस्था सास्वादन गुणस्थान कहलाती है। जैसे वृक्ष से टूटा हुआ फल पृथ्वी पर नहीं पहुंच पाया है-बीच में है, तब तक न इधर का कहते हैं, न उधर का। इसी प्रकार सास्वादन गुणस्थानवी जीव न सम्यग्दृष्टि कह
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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