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________________ ४४८] ॐ जन-तत्त्व प्रकाश मिला-मैं नालन्दा मुहल्ले में रहता हूँ। फिर प्रश्न किया गया-नालन्दा मुहल्ले में तो साढ़े तीन करोड़ घर हैं। आप किस घर में रहते हैं ? उत्तर मिला-मैं विचले घर में रहता हूँ। इतनी बात सुनकर नैगमनय वाले ने प्रश्न करना छोड़ दिया। तब संग्रहनय वाला बोला-विचले घर में तो बहुत-से खण्ड हैं तो ऐसा कहना चाहिए कि मैं अपने बिछौने जितनी जगह में रहता हूँ। तब व्यवहारनय वाले ने कहा-क्या आप अपने सारे विछौने में रहते हैं ? उत्तर दिया गया-मैं अपने शरीर के बराबर ग्रहण किये हुए आकाशप्रदेशों में रहता हूँ। तब ऋजुसूत्र वाले ने कहा-शरीर में तो हाड़, मांस, चमड़ी, केश आदि हैं, असंख्य सूक्ष्म स्थावर काय और बादर वायुकाय वगैरह के भी जीव हैं । द्वीन्द्रिय (कृषि) आदि बहुत-से जीव हैं। अतएव यह कहना चाहिए कि मेरी आत्मा ने आकाश के जितने प्रदेशों का अवगाहन किया है, उतने आकाशप्रदेशों में रहता हूँ। तब शन्दनय कहता है-आत्मप्रदेशों में तो धर्मास्तिकाय आदि पाँचों अस्तिकायों के असंख्यात प्रदेश हैं, अतः यों कहना चाहिए कि मैं अपने स्वभाव में रहता हूँ। तब समभिरूढ़ नय वाले ने कहा- स्वभाव की प्रवृत्ति तो क्षण-क्षण में बदल रही है और उसमें योग, उपयोग, लेश्या आदि अनेक वस्तुएँ हैं। इसलिए यह कहना चाहिए कि मैं अपने निजात्मगुणों में रहता हूँ। तब अन्त में एवंभूत चय ने कहा-निजात्मगुणों में तो ज्ञान, दर्शन और चारित्र, यह तीन प्रधान हैं। प्रभु ने कहा है कि एक साथ दो जगह उपयोग नहीं रहता। अतएव यह कहो कि मैं अपने शुद्ध निजात्मगुण का जिस समय जो उपयोग प्रवर्त्तता है, उसमें रहता हूँ। सातों नयों का यह उदाहरण श्रीअनुयोगद्वारसूत्र में बतलाया है। इससे सातों नयों का दृष्टिकोण कितना सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होता जाता है, यह बात भलीभाँति समझी जा सकती है । विचार की उत्तरोत्तर सूक्ष्मता बतलाने के लिए यह दृष्टांत है । दसरा दृष्टांत-नैगमनय वाला एक बढ़ई पायली (अनाज नापने का लकड़ी का नाप) बनाने के लिए लकड़ी लेने जा रहा था। तब व्यवहार नय वाले ने प्रश्न किया-कहाँ जा रहे हो ? बढ़ई ने उत्तर दियापायली लेने जा रहा हूँ। इसी प्रकार लकड़ी काटते समय, लकड़ी लेकर
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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