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________________ * सूत्र धर्म * ४४७ के ही बोधक होते हैं। अतः जो वस्तु जिस समय अपने नाम के अनुसार क्रियापरिणत हो, उसी समय उसको उस नाम से कहना चाहिए। अन्य समय में नहीं। जो व्यक्ति जिस समय भोजन पका रहा हो, उसी समय उसे पाचक कहा जा सकता है। जब वह पकाने की क्रिया न करके और क्रिया कर रहा हो तब उसे पाचक नहीं कहा जा सकता। जब देवराज ऐश्वर्य को भोग रहा हो तभी उसे इन्द्र कह सकते हैं, जब वह शत्रु के नमर का ध्वंस कर रहा हो, तभी वह पुरन्दर कहला सकता है। यह नय वस्तु का जैसा उपयोग हो, उसी प्रकार उसे मानता है। असण्यात प्रदेशयुक्त धर्मास्तिकाय हो तो ही उसे धर्मास्तिकाय द्रव्य मानता है। सातों नयों पर दृष्टांत नयों का स्वरूप स्पष्ट रूप से समझने के लिए सातों नयों पर एक समुच्चय दृष्टांत देना आवश्यक है। वह इस प्रकार है:-किसी ने किसी से पूछा-आप कहाँ रहते हैं ? तब उसने उत्तर दिया-मैं लोक में रहता हूँ। तब अशुद्ध नैगम नय वाला कहता है- लोक तो तीन हैं। उनमें से आप कहाँ रहते हैं ? तब उस नैगम नय वाले ने उत्तर दिया-मैं तिर्छ लोक में रहता हूँ। तब फिर उससे पूछा-तिर्छ लोक में तो असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं। आप किस द्वीप या समुद्र में रहते हैं ? उसने कहा-जम्बूद्वीप में रहता हूँ । प्रश्न किया गया-जम्बूद्वीप में तो बहुत-से क्षेत्र हैं, आप किस क्षेत्र में रहते हैं ? उसने कहा-भरतक्षेत्र में रहता हूँ। प्रश्न किया गया-भरतक्षेत्र में तो छह खण्ड हैं। आप किस खण्ड में रहते हैं ? तव अति शुद्ध नैगमनय वाला बोला-मैं दक्षिण भरत के मध्य खण्ड में रहता हूँ। प्रश्न किया गया—मध्यखण्ड में तो बहुत देश हैं। उनमें से आप किस देश में रहते हैं ? उत्तर मिला-मैं मगध देश में रहता हूँ। तब प्रश्न किया गया-मगध देश में तो बहुतेरे ग्राम हैं। आप उनमें से किस ग्राम में रहते हैं ? उत्तर मिला-मैं राजगृही नगरी में रहता हूँ। पूछा गयाराजगृही नगरी में तो १३ पाड़े (मुहल्ले) हैं। आप किसमें रहते हैं ? उत्तर
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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