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________________ ३३० ] * जैन-तत्त्व प्रकाश उतरती श्रेणी का । कोई ज्ञान गुण में बड़ा होता है, कोई क्रियागुण में, कोई तप में और कोई वैयावृत्य में फिर भी साधु सभी कहलाते हैं । अलवत्ता काच के समान वे हैं जिनमें संयम के किंचित् भी गुण मौजूद न हों। ऐसे साधु भी पाँच प्रकार के हैं, जिनका उल्लेख आगे किया जाता है। पांच प्रकार के अवन्दनीय साधु जिनागम में पाँच प्रकार के साधु अवन्दनीय कहे हैं। वे इस प्रकारः-(१) पासत्था (२) उसन्ना (३) कुसीलिया (४) संसत्ता और (५) अपछंदा । इनका संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है: (१) पासत्था—दो प्रकार के होते हैं-(१) सर्वव्रत पासत्था, जो ज्ञान दर्शन और चारित्र से सर्वथा भ्रष्ट होते हैं और सिर्फ बहुरूपिया या अभिनेता की भाँति साधु का भेष ही धारण किये रहते हैं। (२) दूसरा देशव्रतपासत्था-जो केशलोच नहीं करते और सदोष आहार लेते हैं। (२) उसन्ना-भी दो प्रकार के होते हैं—(१) सर्व उसन्ना, जो साधु के निमित्त से बनाये हुए पाट, स्थानक आदि का उपयोग करते हैं। (२) देश-उसन्ना-जो दिन में दो बार प्रतिलेखना, प्रतिक्रमण आदि नहीं करते, स्थानक छोड़कर घर-घर भटकते फिरते हैं और अयोग्य स्थल में गृहस्थ के घर बिना कारण ही बैठते हैं। ___ (३) कुशील के तीन भेद हैं:-(१) ज्ञानकुशील-जो ज्ञान के आठ अतिचारों का सेवन करते हैं । (२) दर्शनकुशील-जो दर्शन के आठ अतिचारों का सेवन करते हैं। (३) चारित्रकुशील-जो चारित्र के आठ अतिचारों का सेवन करते हैं। (इन चौबीस अतिचारों का वर्णन तीसरे प्रकरण में, पंचाचार के निरूपण में विस्तारपूर्वक किया जा चुका है ।) इनके अतिरिक्त यह कुशील साधु सात कार्य करते हैं-(१) कौतुक कर्म-औषध आदि उपचार करना, अखण्ड सौभाग्य के लिए स्त्रियों को स्नान आदि क्रियाएँ बत
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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