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________________ * उपाध्याय चार अभिग्रह [ २७१ श्रभिग्रह के चार भेद हैं- (१) द्रव्य से (२) क्षेत्र से (३) काल से और (४) भाव से । इन चारों अभिग्रहों का स्वरूप श्री महावीर स्वामी के दृष्टान्त से दिखलाया जाता है । एक बार चण्डप्रद्योतन राजा ने चम्पा नगरी लूटी। उस समय चण्डप्रद्योतन का एक सारथी चम्पा नरेश की रानी धारिणी और पुत्री चन्दनबाला को ले भागा। जब वह एकान्त जंगल में पहुँचा तो उसने अपनी कुत्सित कामना रानी के सामने प्रकट की । रानी ने अपने शील की रक्षा के लिए प्राण दे दिये । सारथी राजकुमारी चन्दनवाला को कौशाम्बी नगरी ले गया और बेचने के लिए बाजार में खड़ा किया । एक वेश्या खरीदने आई | चन्दनबाला ने उसका आचार पूछा । तब वेश्या ने कहा - 'सदा सुहागिन रहना, नित्य नये शृंगार सजना, मधुर और स्वादिष्ट भोजन करना और सदैव युवकों के साथ भोग भोगना । यह सब आनन्द हमारे कुल के सिवाय और कहीं नहीं मिल सकता। हमारा ऐसा उत्तम सुखकर याचार है ।' वेश्या का यह उत्तर सुनकर चन्दनबाला भयभीत हुई और उसने नमस्कारमंत्र का स्मरण किया । नमस्कारमंत्र के प्रभाव से तत्काल वहाँ बंदरों के रूप में देव ये और चन्दन बाखा को खींच कर ले जाने वाली वेश्या को नौंचने लगे । बन्दरों ने वेश्या की नाक नौंच ली और कान काट दिये । वेश्या अपनी जान बचा कर भागी । उसके बाद श्रावक धर्म का पालन करने वाले धन्ना सेठ वहाँ आये और चन्दन बाला को खरीद कर ले गये । कुछ समय व्यतीत होते ही सेठ की पत्नी मूलाबाई चन्दनवाला से द्वेष करने लगी। एक बार जब सेठजी दूसरे गाँव चले गये तो सेठानी ने चन्दनवाला के सिर के बाल कतर लिये । कपड़े छीन लिये, सिर्फ एक कछोटा बाँधने को दे दिया । हाथ में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियाँ डाल दीं। फिर भौंयरे में बंद करके अपने मायके (पिता के घर ) चल दी ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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