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________________ २७२ ] ॐ जैन-तत्व प्रकाश तीन दिनों के बाद सेठजी लौट कर आये। उन्होंने चन्दनबाला को भौंयरे से निकाला । उस समय खाने की और वस्तु तैयार नहीं थी, सिर्फ भैंस के लिए उड़द के बाकले एक सूप में रक्खे थे। वह बाकले चन्दनबाला को देकर सेठ बेड़ियाँ तुड़वाने के लिए लोहार को बुलाने चले गए। ___ इसी बीच श्रमण भगवान् महावीर ने तेरह बातों का अभिग्रह धारण किया था। वे तेरह बातें इस प्रकार हैं-(१) द्रव्य से--उड़द के 'बाकले 'सूप में रक्खे हों (२) क्षेत्र से—दान देने वाली स्त्री घर के दरवाजे में बैठी हो, एक पैर दरवाजे के भीतर हो और एक पैर बाहर हो, (३) काल से'दिवस का तीसरा पहर हो (४) भावसे-दान देने वाली राजा की कन्या हो, उसके पैर में बेड़ी हो, हाथ में हथकड़ी हो, 'माथा मुडा हो, "कछोटा लगाये हो,"आँख में आँसू हों, अष्टमभक्त की तपश्चर्या वाली हो, और वह मुझे आहार दे, तो ही मैं आहार लूँगा। भगवान् इस प्रकार का कठोर अभिग्रह धारण करके विचरते थे । पाँच महीना और पच्चीस दिन आहार ग्रहण किये बिना बीत चुके थे। संयोगवश भगवान उधर आ निकले । भगवान् के दर्शन करके चन्दनवाला के हर्ष की सीमा न रही। तेला के पारणा के अवसर पर ऐसे परमोत्तम पात्र का योग मिलता देख चन्दनबाला के नेत्रों से हर्ष के आँस मिरने लगे। उसने भगवान् को उड़द के वही बाकले बहराये । तत्काल आकाश में देव छा गये । देवदुंदुभी बजने लगी । सुगंधित अचित्त जल की, सोनयों, वस्त्रों और आभूषणों की वर्षा होने लगी। 'अहो दानम् अहो दानम्' ! के नाद से समस्त आकाश गूंजने लगा। ____ यह समाचार सुन कर सेठानी मूलाबाई धन को बटोरने के लिए पिता के घर से भागी आई। तब देववाणी हुई- 'यह धन चन्दनवाला का है और दीक्षा के समय काम आएगा।' राजा को यह समाचार मिला। वह भी वहाँ आया और अपनी साली की पुत्री चन्दनवाला को पहचान कर विस्मित हुआ। चन्दनबाला की बेड़ियाँ टूट पड़ी, हथकड़ियाँ खिर गई, मस्तक पर पहले सरीखे बाल आ गये और वह उत्तम वस्त्राभूषणों से सजित बन गई।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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