SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * सिद्ध भगवान् है [१०६ की इच्छा होती है। छहों संहनन* तथा छहों संस्थानों+ वाले और पाँचों गतियों में जाने वाले मनुष्य होते हैं। २३ तीर्थङ्कर, ११ चक्रवर्ती, ह बलदेव, ६ वासुदेव, ६ प्रतिवासुदेव भी इसी आरे में होते हैं । वासुदेव-पूर्वभव में निर्मल तप संयम का पालन करके नियाणा (निदान ) करते हैं और आय पूर्ण होने पर स्वर्ग या नरक का एक भव करके उत्तम कुल में अवतरित होते हैं। उनकी माता को सात उत्तम स्वम आते हैं। जन्म ग्रहण करके, युवावस्था को प्राप्त होकर राजसिंहासन पर स्थित होते हैं। वासुदेव पद की प्राप्ति के समय सात रत्न उत्पन्न होते हैं । यथा-(१) सुदर्शन चक्र (२) अमोघ खड्ग (३) कौमुदी गदा (४) पुष्पमाला (५) धनुष-अमोघवाण (शक्ति) (६) कौस्तुभमणि और (७) महारथ । २०००००० अष्टापदों का बल इनके शरीर में होता है। वासुदेव से पहले प्रतिवासुदेव उत्पन्न होता है। वह दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र पर राज्य करता है। वासुदेव उसे मार कर उसके राज्य के अधिकारी बन जाते हैं । अर्थात् वासुदेव का तीन खण्डों पर एक छत्र राज्य होता है । * १-हड्डियाँ, हड्डियों की संधियाँ (कील) और ऊपर वेष्टन वज्र का होना (१) वज्र ऋषभनाराच संहनन कहलाता है। हड्डियां और कील वज्र की हों और वेष्टन सामान्य हो वह (२) ऋषभनाराच संहनन है। कील वज्र की हो, हाड़ और वेष्ठन साधारण तो वह (३) नाराच संहनन है। हड्डियों में कील पूरी पार न गई हो, आधी बैठी हो वह (४) अर्धनाराच संहनन कहलाता है। हाड़ों में कोल न होना, सिंफे ऊपर मजबूत वेष्ठन होना (५) कीलक संहनन है। अलग-अलग हाड़ों का नसों से बंधा रहना (६) सेवार्त्त (छेवट्ट) संहनन कहलाता है। + सारे शरीर का आकार प्रमाणोपेत सुन्दर होना (१) समचतुरस्र संस्थान । बड़ के वृक्ष की तरह उपर से ठीक और नीचे से खराब (हीन) श्राकार होना (२) न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान । इससे उलटा अर्थात् नीचे के अवयव ठीक और ऊपर के अवयव खराब होना (३) स्वाति संस्थान । शरीर का आकार बौना होना (४) वामन संस्थान । शरीर पर कूबड़ होना (५) कुब्जक संस्थान । सारा शरीर बेडौल होना (६) हुंडक संस्थान कहलाता है।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy