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________________ १०८] 8 जैन-तत्त्व प्रकाश ३२००० मुकुटधारी राजा उनके सेवक होते हैं। ६४००० रानियाँ+ होती हैं। ८४००००० लाख हाथी, ८४००००० घोड़े, ८४००००० रथ, १६००००००० पैदल, ३२००० नृत्यकार, १६००० राजधानियाँ, १६००० द्वीप, ६६००० द्रोणमुख, ६६०००००० ग्राम, ४६००० बगीचे, १४००० महामन्त्री, १६००० म्लेच्छ राजा सेवक, १६००० रत्नागार, २०००० सुवर्ण चाँदी के आकर, ४८००० पट्टन, ३००००००० गोकुल ३६० भोजन बनाने वाले रसोइए, २६००००० अङ्गमर्दक, ६६००००००० दास-दासियाँ, १६००००० अङ्गरक्षक, ३००००००० आयुधशालाएँ, ३००००००० वैद्य, ८००० पण्डित और ६४००० बयालीस मंजिल वाले महल होते हैं । ४००००००० मन अन्न, १००००० मन नमक और ७२ मन हींग प्रतिदिन का खर्च है। इत्यादि और भी बहुत-सी ऋद्धि चक्रवर्ती की होती है। इस ऋद्धि को त्याग कर जो संयम धारण करते हैं तो मोक्ष या स्वर्ग जाते हैं। अगर राज्य भोगते-भोगते मृत्यु को प्राप्त होते हैं तो नरक गति में जाते हैं। इस बारे में साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका और केवलज्ञानी होते हैं । नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देव और मोक्ष-इन पाँचों गतियों में जाने वाले जीव होते हैं। (४) दुखमा-सुखमा---इस प्रकार तीसरा आरा समाप्त होते ही, ४२००० वर्ष कम एक करोड़ सागरोपम का चौथा दुखमा-सुखमा ( दुःख ज्यादा, सुख थोड़ा) नामक चौथा आरा आरंभ होता है। तब पहले की अपेक्षा वर्णादि की, शुभ पुद्गलों की अनन्तगुणी हानि हो जाती है। देहमान क्रमशः घटते-घटते ५०० धनुष का और आयुष्य एक करोड़ पूर्व का रह जाता है । पसलियाँ सिर्फ ३२ होती हैं। दिन में सिर्फ एक बार भोजन + कोई-कोई १९२००० स्त्रियाँ कहते हैं। सो एक राजकन्या के साथ एक प्रधान की और एक पुरोहित की पुत्री पाती है, ऐसा कहा जाता है। अतः ६४०००४३% १९२००० हो जाती हैं। ४ दस हजार गायों का एक गोकुल कहलाता है। * उपयुक्त चक्रवती की ऋद्धि सारे भरतक्षेत्र में होती है।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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