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________________ ॐ सिद्ध भगवान् [ ६६ इनमें चौथे विद्युत्कुमार से स्तनितकुमार तक प्रत्येक के दक्षिणविभाग में चालीस-चालीस लाख और उत्तरविभाग में छत्तीस-छत्तीस लाख भवन हैं । दूसरे नागकुमार से लेकर दसवें.स्तनितकुमार तक को नवनिकाय (नौ जाति) के देव कहते हैं। दक्षिणविभागों में नौ ही निकायों के प्रत्येक इन्द्र के छह-छह हजार सामानिक देव हैं, चौवीस-चौबीस हजार प्रात्मरक्षक देव हैं, पाँच-पाँच अग्रमहिपियाँ (इन्द्रानियाँ ) हैं। प्रत्येक इन्द्राणी का पाँच-पाँच हजार का परिवार है । नौ ही इन्द्रों की सात-सात अनीक हैं, तीन-तीन परिपद् हैं। आभ्यन्तर परिषद् के ६०,००० देव हैं, मध्यपरिषद् के ७०,००० देव हैं और बाह्यपरिषद् के ८०,००० देव हैं। प्राभ्यन्तर परिषद् में ७५ देवियाँ हैं, मध्य परिषद् में १५० देवियाँ हैं और बाह्य परिषद् में १२५ देवियाँ हैं। इन नौ ही जातियों के देवों की आयु जघन्य १०००० वर्ष की और उत्कृष्ट १॥ पल्योपम की है। देवियों की आयु जघन्य १०००० वर्ष की और उत्कृष्ट अायु पौन पल्योपम की है। उत्तरविभाग के नौ ही इन्द्रों के सामानिक देवों, आत्मरक्षक देवों, अग्रमहिषियों, अग्रमहिषियों के परिवार, अनीक और परिषदों की संख्या दक्षिणविभाग के समान ही है । परिषद् के देवों की संख्या में अन्तर है । वह इस प्रकार-आभ्यन्तर परिषद् के ५०,००० देव, मध्यपरिषद् के ६०,००० देव और बाह्य परिषद् के ७०,००० देव हैं । प्राभ्यन्तर परिषद् की देवियाँ २२५, मध्य परिषद् की २००, और बाह्य परिषद् की १७५ देवियाँ हैं। सभी की आयु जघन्य १०,००० वर्ष की और उत्कृष्ट कुछ कम दो पल्योपम की है। पूर्वोक्त दसों अन्तरों में रहने वाले दक्षिण दिशा के देवों के भवन मिल कर ४,०६,००,००० हैं और उत्तरविभाग के सब भवन ३,६६,००००० होते हैं। इनमें छोटे से छोटा भवन जम्बूद्वीप के बराबर अर्थात् एक लाख योजन का है, मध्यम भवन अढ़ाई द्वीप के बराबर अर्थात् पैंतालीस लाख योजन के हैं और सब से बड़ा भवन असंख्यात द्वीप-समुद्रों के बराबर अर्थात् असंख्यात योजन का है। सब भवन भीतर से चौकोर, बाहर गोलाकार, रत्नमय, महाप्रकाशयुक्त का और समस्त सुख-सामग्रियों से भरपूर हैं ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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