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________________ १८ ] * जैन-तत्त्व प्रकाश मध्यपरिषद् के २४,००० देव, बाह्यपरिषद् के २८,००० देव हैं। प्राभ्यन्तर परिषद् में ४५० देवियाँ, मध्यपरिषद् में ४०० देवियाँ और बाह्यपरिषद् में ३५० देवियाँ भी हैं। इन देवों की आयु जघन्य १०,००० वर्ष से भी कुछ अधिक और उत्कृष्ट एक सागरोपम से कुछ अधिक और इनकी देवियों की आयु जघन्य १०,००० वर्षे से कुछ अधिक तथा उत्कृष्ट ४॥पल्योपम की है। दूसरे अन्तर में नागकुमार जाति के भवनपति रहते हैं । दक्षिणविभाग में उनके ४४ लाख भवन हैं और धरणेन्द्र उनके स्वामी हैं। उत्तरविभाग में ४० लाख भवन हैं और भूतेन्द्रजी उनके स्वामी हैं । तीसरे अन्तर में सुवर्णकुमार जाति के भवनपति रहते हैं। दक्षिणविभाग में इनके ३८ लाख भवन हैं और उनके स्वामी वेणुइन्द्र हैं। उत्तरविभाग में ३४ लाख भवन हैं और उनके स्वामी वेणुदालेन्द्र हैं। चौथे अन्तर में विद्युत्कुमार जाति के भवनपति देव रहते हैं । दक्षिणविभाग के इन्द्र हरिकांत हैं और उत्तरविभाग के इन्द्र हरिशेखरेन्द्र हैं । पाँचवें अन्तर में अग्निकुमार जाति के भवनदेव रहते हैं । दक्षिणविभाग के इन्द्र अग्निशिखेन्द्र हैं और उत्तरविभाग के अग्निमाणवेन्द्र हैं। छठे अन्तर में द्वीपकुमार जाति के भवनपति देव रहते हैं । दक्षिण के पूरणेन्द्र हैं और उत्तर के विष्ठेन्द्र हैं। सातवें अन्तर में उदधिकुमार देव रहते हैं । दक्षिण के इंद्र जलकान्तेन्द्र और उत्तर के जलप्रभेन्द्र हैं। __ आठवें अन्तर में दिशाकुमार जाति के भवनपति रहते हैं। दक्षिण के इन्द्र अमितेन्द्र और उत्तर के अमितवाहनेन्द्र हैं। नौवें अन्तर में वायुकुमार जाति के भवनपति रहते हैं । दक्षिण के इन्द्र बलवकेन्द्र और उत्तर के प्रभंजनेन्द्र हैं। दसवें अन्तर में स्तनितकुमार देव रहते हैं। इनमें दक्षिण के इन्द्र घोषेन्द्र हैं और उशर के महाघोषेन्द्र हैं।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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