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भाई मानते है । ईश्वर का दूसरा रूप नीचे की पक्तियों में पढिए
२ - ईश्वर एक है, अनादि है, सर्वव्यापक है, सच्चिदानन्द है, चट-घट का ज्ञाता है, सर्वशक्तिमान है, ससार का निर्माता है । जीव कर्म करने मे स्वतन्त्र है, उस मे ईश्वर का कोई हस्तक्षेप नही है । जीव अच्छा या बुरा जैसा भी कर्म करना चाहे कर सकता है, यह उस की इच्छा की बात है, ईश्वर का उस पर कोई प्रतिबन्ध नही है किन्तु जीवो को उन के कर्मो का फल ईश्वर देता है । अपनी लीला दिखाने के लिए, पापियो का नाश करने के लिए और धर्मियो का उद्धार करने के लिए ईश्वर अवतार धारण नही करता है, भगवान से मनुष्य या पशु के रूप मे जन्म नही लेता है ।
ईश्वर का यह दूसरा रूप है, जिसे आज कल हमारे आर्य भाई मानते है । ईश्वर का तीसरा रूप भी समझ लीजिए३ - ईश्वर एक ही नही है, ईश्वर अनेक भी है, अनादि ही नही है, सर्वव्यापक ही नही है, अनन्त शक्तिमान है, घट-घट का ज्ञाता है, द्रष्टा है, जगत का निर्माता नही, भाग्य का विधाता नही, कर्मफल का प्रदाता नही, अवतार लेकर ससार मे श्राता नही, जीव कर्म करने में स्वतंत्र है, जीवकृत कर्म के साथ ईश्वर का प्रत्यक्ष या परोक्ष कोई सम्बन्ध नही है । जीव की उन्नति या अवनति मे ईश्वर का कोई हस्तक्षेप नही है, ग्रहिसा, सयम और तप की त्रिवेणी मे विशुद्ध मनसा, वाचा और कर्मणा गोते लगाने वाला व्यक्ति निष्कर्मता को प्राप्त करके ईश्वर बन जाता है । ईश्वर और जीव मे केवल कर्म - -गत अन्तर है । कर्म की दावार यदि मध्य मे से उठा दी जाए तो जीव मे और ईश्वर मे
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